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भगवान महावीर। वह साक्षात् अनुभवसे ही अन्दाजा ना सक्ता है। " ___ "....हम आशा करते हैं कि हमारे विद्वान् मित्रगण अपने फालतू समयको अन्यथा व्यर्थ न जाने देंगे, बल्कि पावापुरीकी यात्रा करके भगवानके परोक्ष परन्तु साक्षात् चरणों तले बैठनेका सौभाग्य प्राप्त करेंगे, जिनकी प्रकाशमान उँगलियां आज भी सनातन मार्गको व्यक्त कर रही हैं और जिनकी हितमितपूर्ण वाणी अव भी व्यथित यात्रीको शांति, सुख और सत्यके पवित्र देशकी ओर पग बढ़ानेको ललचारही है !"
वस्तुतः पावापुरीका साधारण पर मनमोहक सौन्दर्य आत्मामें , एक अपूर्व उत्साह भरनेका काम करता है। उसका विशेष अनुभव और महत्व उन्ही लोगोंको मालूम हो सका है, जिन्होने - अपनी आत्माका स्वरूप साक्षात् अनुभव द्वारा देख लिया है। उनके निकट-भगवानके पवित्र चरणोके समीप बैठना मानो स्वर्गीय सुखका अनुभव करना है। वहां बैठना क्या है ? बरिक मुक्तिके द्वारके ताले खोलना है। वहां स्थान ही धन्य है--पवित्र है, जहां प्रमूके चरण चर्चित हैं । और
उधर आते पग उधार, मस्तकसे नमि लेना ! दरशन कर पवित्र चरणका, स्वातम लखलेना! है वह पावन ठौर, यहां है महिमा दिखती ! उस सम और न ठौर, मही जहाँ सुन्दर दिखती !