________________
'१९६
भगवान महावीर
कि उसकी मान्यता और भक्तितं एक बड़े और गण्यमाण्य मनुष्य
1
"
·
समुदायने की थी । वास्तवमें चारित्र संसार में एक बड़ी वस्तु है। अस्तु ।
"
भगवान महावीरके चारित्रकी उत्कृष्टता और निर्मलताका दिग्दर्शन कराना कोई साधारण कार्य नही है । वे तीर्थंकर थे और अन्तमें साक्षात् चारित्ररूप थे । अर्हतके छ्यालीस गुण उनमे विरा जमान थे । वे सशरीरी सर्वज्ञ बुद्ध - परमेश थे । परमात्मा के सम्पूर्ण 1 गुण उनमें दृश्य थे। उनका उल्लेख करनेको शब्द पर्य्याप्त नहीं हैं। परन्तु उनके पवित्र, जीवनपर दृष्टि रख इस विषय में हम निम्नप्रकार कुछ प्रकाश डालेंगे |
1
कहा जाता है कि महात्माओंके चारित्रकी उत्कृष्टता प्रकट करनेवाली तीन बातें हैं; अर्थात् शारीरिक बल, मानसिक उत्तमता, और नैतिक चारित्रकी पवित्रता । अस्तु, हम देख चुके हैं कि भगवान महावीरका शारीरिक बळ अनन्त था । उनका शरीर सर्वोपरि उत्कृष्ट और उत्तम था, देखनेमे सुन्दर था और सुवासित था। सात हाथका स्वर्णके वर्णका था जिसके अपरमितं बलसे भगवानने मंत्त हाथिको पकड़ लिया था। भगवान जीवनपर्यन्त बेलिब्रह्मचारी रहे थे ।
भगवानकीं मानसिक उत्कृष्टता इसीसे प्रकट है कि वह जन्मसे ही मति, श्रुति और अवधिज्ञानके धारक थे। और दीक्षां ग्रहण करनेके उपरान्त आपको अवशेष मनःपर्यय और केवलज्ञानकी प्राप्ति हो गई थी। योग द्वारा आपने ज्ञान प्राप्त किया था, जो अनन्त यथार्थ और सर्वव्यापक था। आप एक बड़े प्रभावशाली अनुपम वक्ता भी थे। आपके मुखसे सदैव यथार्थ
+