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भगवानका मोक्षलाभ।
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पौद्गलिक:प्रकाश अपना विकास दिखा रहा है । " यह दीपावली (दिवाली) का उत्सव आजसे करीब साढ़े चौवीस सौ वर्ष पहिले - ईसासे पूर्व संवत् १२७ में भारतवासियों द्वारा परम हर्ष और आनन्दसे मनाया गया था, जो आजतक अपने उसी रूपमें प्रचलित है, यद्यपि उसकी असलियत भुला दी गई है । हरिवंशपुराणके निम्न श्लोक इसी बात बातको अच्छी तरह प्रगट कर देते हैं, अर्थात:
ज्वलत्प्रदीपालिकया प्रवृद्धया, - सुरासुरैदीपितया प्रदीप्तया ।
तदास्म पावानगरी समंततः,
प्रदीपिताकाशतला प्रकाशते ॥ १९ ॥ ३३ ॥ ततश्च लोकः प्रतिवर्षमादरा
प्रसिद्ध दीपालिकयात्र भारते । समुद्यतः पूजयितुं जिनेश्वरं, जिनेन्द्रनिर्वाणविभूति भक्तिभाक् ॥ २१ ॥ ६६ ॥ "
अर्थात् - उस समय भगवान महावीरके निर्वाण कल्याणके उत्सवके समय सुर असुरोंने महादेदीप्यमान जहां तहां दीपक जलाये - रोशनी की जिससे कि पावानगरी अति सुहावनी जान पड़ने लगी और दीपकोके प्रकाशसे समस्त आकाश जगमगा उठा ||१९|| भगवानके निर्वाण दिनसे लेकर आज तक भी जिनेन्द्र महावीरके निर्वाण कल्याणकी भक्ति से प्रेरित हो लोग प्रतिवर्ष भरतक्षेत्र में दिवाली के दिन दीपोकी पंक्तिले उनका पूजन स्मरण करते हैं ॥ २१ ॥