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भगवान महावीरम wight-finalis); ( १ ) अतिम पानं (२.) अंतिम गान (३) अतिम नृत्य (४) अंतिम कुशील | Solicitation), (५) अंतिम आंधी ( Tornadi) (६), अंतिम छिड़कनेंवाला'हाथी (७) अन्तिम बड़े, पत्थरोंसे लड़ाई (८) और अन्तिम तीर्थकर मक्खालीपुत्त और चत्तारिपाणगाय व चत्तारि अपाणगायंका नियम । पूर्वके नियमोका यथार्थ भाव प्रगट नहीं है।" संभव है इसमें भी कुछ मंत्रवादका अंश हो ।डॉ० हॉर्नल साहब इनमेंसे प्रथम चारको गोशालके अन्तिम समयके वेसुधीकी दशासे सम्बंधित बतलाते हैं और अवशेषके चारमेंसे तीनको उस समयकी घटनाओंसे सम्बंधित बतलाते हैं जब, गोशालकी मृत्यु हुई' थी परन्तु वह धार्मिक सिद्धान्त क्यो माने जाने लगे यह बात अर्धकारमे है। शायद यह कारण हो कि गोशालके तीर्थकरत्वको प्रगट करनेके लिए उन्होंने यह प्राकृतिक घटनाएं ले ली हों।
और यही बात ठीक जंचती है क्योकि इस समय भगवान महावीरका प्रचार हो रहा था, और लोगोंको असली तीर्थङ्करका पता 'चलंगया था। इसलिए उनका विश्वास मक्खाली गोशालके तीर्थ'करपनेमें कम हो चला था, जिसके कारण ही आजीवकोंको 'मक्खाली गोशालको ही तीर्थकर माने जानेके लिए यह सैद्धांतिक 'नियम रचना पड़ा था ऐसा प्रतीत होता है और इसकी पुष्टि के लिए उन्होंने प्राकृतिक घटनाऐं भी प्रमाणरूपमें ले लीं थीं। अस्तु, इस नियमका इस प्रकार खुलासा होनाता है, जिससे प्रगट होता है कि इसमे कुछ भी सैद्धातिक भाव न था। चत्तारि पाणगायं आदि नियमके विषयमें हम- पहिले कह चुके हैं कि उसका