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। १८०, ।। भगवान महावीर।'
हे सम्राट, 'अच्छे बुरे कर्म भी- नहीं है और उनके फल भी 'कुछ नहीं हैं।" बौद्ध कहते हैं कि वह मरकर अवीचिनरकमें
गया। उसके मतसे समस्त पानी विना कारण अच्छे बुरे होते हैं।। संसारमें शक्ति सामर्थ्य आदि पदार्थ नहीं हैं। जीव अपने अदृष्टके प्रभावसे यहां वहां संचार करते हैं। उन्हें जो सुखदुःख भोगना पड़ते हैं, वे सब उनके अहष्टपर निर्भर हैं। इत्यादि। .... (देखो जैनहितेषी भाग १३ अंक ५६ पत्र २६०), .... “बौद्ध सम्प्रदायके 'समनफलंसूत्र' से प्रगट है कि महाराज 'अजातशत्रुसे मजलिपुत्र गोशाल मिले थे। अजातशत्रुने बुद्धसे गोशालका मत इस तरह प्रकट किया-"महाराज ! वितरण. दान. बलिविधान, पुण्य, पाप, पापपुण्यका फलाफल, वर्तमान जगत, स्वर्ग नर्क, पिता, माता, देव, अप्सरां, नीवलोक, श्रमण, ब्राह्मण आदि कहीं कुछ भी नहीं होता और न उसकी विद्यमानताका कोई प्रमाण ही दे सका है। जो लोग इन द्रव्योका अस्तित्व बताते वह झूठे हैं।" (हिन्दी विश्वकोप भाग २ पृष्ठ ५२३) - मक्खाली गोशालकी मृत्यु श्रावस्तीके हालाहलाकी कुम्भारशालामें ज्वरके कारण महावीरस्वामीकी निर्वाणप्राप्तिके १६ वर्ष पहिले हुई थी। इस समय अंगदेशके वायसराय और पश्चातमें मगधके राजा कुणिक और वैशालीकराजा चेटकसे युद्ध एवं महावीर भगवानका । धर्म प्रचार होरहा था । मक्खाली गोशालके परिणामवादके घोसमें अब लोग नहीं आ रहे थे। इसलिए " जनता से इस प्रकार विश्वास उठ जानेके कारण गोशाल दिनोदिन हीनताको प्राप्त होता गया, और अंतमे वह एक मूर्खकी भांति मृत्युको प्राप्त हुआ।" ।
(S08 tlo Eleart of Jainisiu P. 60.)