SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • १४६ भगवान महावीर मत्रीका पुत्र सुषेण मुनि होगया था। सुषेणको प्रीतिवश आहार देनेके लिए इन्होंने अपने पुरवासियोंको उन्हें आहार देनेकी मनाई . कर दी थी, परन्तु देवयोगसे इधर आप भी अन्य कार्योंमें व्यस्त होगये थे जिससे वह मुनि निराहार कई दफे लौट गये थे। अंतिम चार जब वह लौटे जारहे थे तब उनके कानमें लोगोके वचन पड़े कि "रांना न स्वयं आहार देता है और न हमें देने देता है।" यह सुनते ही मुनि ईर्यापथसे विचलित होगये और क्रोधके मारे उनका सारा शरीर धधकने लगा और पत्थरसे ठुकराकर एकदम गिरगए जिससे तत्काल ही उनके प्राणपखेरू उड़ गए । खोटे निदा. नसे मुनि सुषेण व्यंतर हुए थे। सुमित्र भी अन्तमें तापस होगया था और मरकर देव हुआ था। यही देव खर्गसे आकर राजा श्रेणिक हुआ और यह व्यंतर रानी चेलनाके गर्भसे कुणिक नामक पुत्र हुआ, जो पूर्वमवके वेरके कारण सदेव श्रेणिकका शत्रु रहा था। ' मुनिरानके पाससे धर्मश्रवण करनेसे राजा श्रेणिकको जनधर्ममे कुछ प्रीति होगई थी, परन्तु बौद्धाचार्याक समानेपर उन्हें पुनः जैनगुरुओमें अश्रद्धान होगया था। उनके मनमें फिरने जैनधर्म एवं जैनमुनियोंकी परीक्षाका विचार आकर सामने दुगने लगा था। तदनुसार महारानने जनमुनियोंकी परीक्षा ली थी, जिसमें महारानके हृदयमें पुनः जनधर्मक प्रति सन्नाव होगय थे। अन्तनः जब भगवान महावीरस्वामी समस्कारण गनगरक निकट विपुलावन पर्वतपर आया था नाम महाराज श्रेभिक मावादके समकारणने गए थे, जैसा कि उपयुक पविताने मोहरू प्रारंभ की हुई है. विदित होता है। माया मान
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy