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समर्पण
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प्रिय स्वर्गासीन सखे ! ___ मैं जानता हूँ कि वर्गलोकमें आपको यहांसे बहुत कुछ अधिक सुख प्राप्त होगे; किन्तु जिस पुनीत कार्यकी आपके पवित्र हृदयमें उत्कट लालसाथी, उसीके अनुरूपमे यह एक तुच्छ कृत्य अवश्य ही आपकी आत्माको सुखमाजन होगा। अतएव प्यारे देवसखा 'देवेन्द्र'! यह -पुनीति 'वाल-कृति ' आपकी ही पवित्र स्मृतिके निमित्त आपको ही सादर सप्रेम समर्पित है। यदि इससे किञ्चित् भी 'धर्मप्रभावना' हुई तो उससे 'मेरो और आपकी' दोनों आत्माओकी संतुष्टि होगी। तथास्तु।
प्रेम-वियोगीकामताप्रसाद जैन।
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