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श्रेणिक और चेटक। १४१ चरित्र में कच्छदेगमें होना लिखा है जब कि विशाला अथवा वैशाली विदेहमें थी, जैसा हम देख चुके है। अतः यह संभव होना प्रगट होता है कि जैनाचार्योंने उस देशको कच्छदेशके नामसे लिखा था जिसमें कि विशाला, कौशाम्बी और रोकपुर अवस्थित थे ! फलतः नृप उद्दायन कौशाम्बीके नृपति शतगीकके पुत्र रानी मृगावतीसे थे, जो राजा चेटकके घेवते थे और राजा उपश्रेणिकके नाती थे। शायद यही नृपउदायन अपने सम्यक्त के कारण जैनसमाजमे विख्यात हैं। और महातुर कच्छदेशके रोरुकपुरके खामी प्रभावतीके पति थे।
महाराज चेटककी अवशेष तीन कन्याएं अभी कुमारी ही थी! इनमेसे एककी याचना गांवारदेशके महापुरके राजा महिपालके पुत्र सात्यकीने की थी। सभवतः वौद्धोके जातक कथानकके गांधारदेशके राना बोधिसत्त ही यह सात्यकी हैं। वोधि शब्द सत्तके साथ बौद्ध लेखकोंने व्यवहृत किया होगा । उस कथानकमे इन्ही बोधिसत्तको पंचव्रत (अणुव्रत-lonal Precepts) धारण करते लिखा है। और सन्यास लेना भी लिखा है। (Sea The Kshatriya Clans in Bur'dhist India P. 153) इससे सात्यकी और बोधिसत्तका एक व्यक्ति होना प्रतीत होता है। अस्तु, इन सात्यकीकी याचनाको राजा चेटकने स्वीकार नहीं किया, जिसके कारण वह दीक्षा ले गया। ___ पश्चात् कवि खुशालचन्दछत पूर्वोल्लिखित उत्तरपुराणकी छन्दोबद्ध हिन्दी आवृत्तिमे यह उल्लेख है कि राजा चेटक मगधपर आक्रमणकर राजगृहके निकट ठहरा हुआ था। वहांपर इनको इनकी पुत्रियोंका चित्रपट किसी चित्रकारने दिया था। इस लड़ाईका