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श्रेणिक और चेटक |
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उन्हें एकं गहनवनमें जा पटेका। वहां पर भीलोंके अधिपति यमदंडने इनको अपने यहां रक्खा । यह क्षत्रिय राजा राज्यसे भ्रष्ट हो यहां रहता था । महाराज उपश्रेणिक इसकी सुन्दर कन्या तिलकवतीके रूपलावण्य पर गुग्ध हो उससे उसकी याचना करने लगे। उसने इस शर्तपर वह कन्या इनको देदी कि उसका ही पुत्र राज्याधिकारी होगा । तदनुसार तिलकवतीके पुत्रं चलाती नामक हुआ था और उसीको राज्याधिकार मिला था ।
कुमार श्रेणिकको कुछ दोष लगाकर देशनिकालेका कठोर दण्ड मिला था और मंत्री आदिके कहनेसे उन्होंने पितृ आज्ञाका उल्लंघन नहीं किया था। ऐसा ही उल्लेख सर रमेशचंद्रदत्तने अपने 'भारतवर्षकी सभ्यताके इतिहास' में दृष्ट २१ पर किया है कि “.. मगधके एक राजकुमार ... को .. ईसाके पहिले पांचवीं
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शताब्दिमें उसके पिताने....... देशसे निकाल दिया था । " संभव है कि यही राजकुमार कुमार श्रेणिक हों। जो हो, राजगृहसे निकलकर वे नंदिग्राम पहुंचे, परन्तु वहांके ब्राह्मणोंने इनको आश्रय नही दिया । इस लिए वह अगाडी चलकर वौद्ध सन्यासियोके आश्रम में गए, और वहां उनका आतिथ्य स्वीकार किया । बौद्धाचार्यके मीठे चचनोंके प्रभावसे कुमार श्रेणिकने बौद्धधर्म स्वीकार किया । और बौद्धधर्मके पक्के अनुयायी हो गए । वे कुछ दिन पर्यंत वही पर रहे ।
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पश्चात् बौद्धाश्रमसे इन्द्रदत्त सेठीके साथ२ अन्यत्रको चल दिए । और इन्द्रदत्त सेठिके नगर वेणपद्ममें पहुंच गए। श्रेष्ठि इन्द्रदत्तके एक युवती कन्या नंदश्री नामकी सर्वगुण सम्पन्न थी,