SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रेणिक और चेटक। खयं व्यक्त करते हैं परन्तु अवशेष जीवनमें आपने जैन धर्म अपनी रानी चेलनाके प्रयत्नसे ग्रहण किया था। यही कारण प्रतीत होता है कि बौद्ध शास्त्रोंमे इनके अन्तिम जीवनकालका कोई निश्चित वर्णन नहीं है जिसका न होना ठीक भी है, क्योंकि जब महाराज श्रेणिक जैन होगए थे तब मला प्रतिपक्षी धर्मकी विजयका हाल बौद्ध लोग कैसे लिखते और यही कारण है कि बौद्धोंने उनके पुत्र कुणिकको, जो अपने पिताकी भांति अपने प्रारंभिक जीवन में जैनधर्मका श्रद्धालु था, 'सर्व दुष्कृत्योंका समर्थक और पोपक' लिखा है । इससे हमारा श्रणिक महाराजको अन्तमें जैनधर्मानुयायी लिखना उपयुक्त प्रतीत होता है। सन १९२१ की अप्रेल मासकी 'सरस्वती' के प्रष्ट २३३ से २३७में प्राचीन जैन सम्राट् खारवेलका वर्णन खंडगिरी उदयगिरि पर्वतकी हाथी गुफावाले शिलालेखके आधारपर दिया हुआ है, उससे भी विदित होता है कि श्री श्रेणिक महाराज अर्थात् विम्बसार और अमात- . शत्रु अर्थात् कुणिक प्रसिद्ध जैन राजा श्री महावीर खामीके समयमें हो गए हैं । अस्तु, नैन शास्त्रोंका श्रेणिक और कुणिकको जैन धर्मानुयायी लिखना यथार्थ है। जैनशास्त्रोंमें श्रेणिकके विषयमें निम्न प्रकार वर्णन है और इनकी मान्यता जैनसमाजमें इतनी है कि वे मानते हैं कियदि महाराज श्रणिक महावीर भगवानके समवशरणमें नही होते और भगवानसे ६०००० प्रश्न न करते तो आज जैनधर्मका नाम भी न सुनाई पड़ता! परन्तु अभाग्यवश इन इतने प्रश्नोंमेसे आज हमें अति अल्पसंख्यक प्रश्नोंका उत्तर मिलता है। अव
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy