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भगवान महावीर। नहीं बिकनेवाले भी रत्न विक गए हैं, और निमित्त-ज्ञानियोंने कहा था कि जिस पुरुषके आनेसे यह रत्न ,विक्रय होगा, वही विमलाका पति होगा, अतएव स्वीकार कीजिए। ..
तदनन्तर जीवंधरखामी गन्धोत्कट सेठसे सम्मति लेकर अपने मामा गोविन्दराजके यहां धरणीतिलकानगरीको गए, और उनसे परामर्श करके उनके साथ काष्टांगारके निमंत्रण मिलने पर ससेना राजपुरीमें आए। फिर गोविन्दराजने वहां अपनी पुत्री लक्ष्मणाका स्वयंवर रचा और प्रगट किया कि चंद्रक यंत्रके तीन वराहोंको जो छेदेगा, उसे अपनी कन्या व्याह दूंगा। सर्व राजागण इसमें विफल हुए। जीवंधरने वातकी वातमें उन वराहोको छेद दिया। इसी समय गोविदराजले सब राजाओंपर प्रकट कर दिया कि यह सत्यंधर महाराजका पुत्र जीवंधर है। अब काष्टांगार बहुत घबराया और युद्धपर उतारू हुआ, परन्तु आखिर वह पापी जीवंधरके हाथसे मारा गया।
- इसके पश्चात् गोविन्दराजने नीवंधर कुंमारका बड़े भारी उत्साहसे राज्याभिषेक किया और जीवंधर महाराज अपना कुल परम्परागत राज्य करने लगे। फिर अपनी पद्मा आदि सब रानियोंको बुलाकर उसने उनके व्याकुल हृदयको शांत किया, और मामा गोविन्दराजकी पुत्री लक्ष्मणासे पाणिग्रहण किया ।
* इस नगरीको प्रचूड़ामणि काव्यमे जिसके अनुसार यह क्या लिखी गई है, 'विष्हदेशकी घरणीतिलका नाम राजधानी' और गोविन्दराजको विहे देशमा राजा लिखा है, परन्तु दुनी और विदेडकी राजधानी मिथिला कही गई है। इससे सम्मश्वा यही व्यक होता है कि वह दो हिमानों शिमक था।