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________________ (६) नसे दृढ़ श्रद्धानको प्राप्त किया था, यह इसके पाठसे ज्ञात हो जायगा । और इस तरह भगवान महावीरकी यथार्थ जीवन घटना-' ओंका शुभ्र ज्ञान भी विज्ञपाठकोंको हो जायगा ! तथैव उनके दिव्य जीवनसे और उनके सर्व कल्याणकारी अवाधित संदेशसे उनके हृदयो में सौम्य वीरत्व और सुन्दर सार्वप्रेमका उक नह निकलेगा ! इसी लिए यह पवित्र 'पुस्तक ' ऐतिहासिक प्रमाणिकताकी दृष्टिसे लिखी गई है। संभव है कि इस नूतन प्रणालीको हमारे कुछ साधर्मी सज्जन पसन्द न करें; परन्तु उनको जान लेना चाहिए कि धर्मकी वास्तविक प्रभावना के निमित्त ही यह इस ढंग पर लिखी गई है, क्योंकि आधुनिक विद्वत्समाज अपनी भ्रम बुद्धिके अनौचित्यको तव ही स्वीकार करेगी जब वह अपनी व्याख्याके विपरीत सप्रमाण वर्णन देखेगी । धर्मके प्रति प्रचलित कुत्सित, विचारोंका दूर होना ही वास्तविक प्रभावना कही जासक्ती है इसके साथ ही विज्ञ पाठकोको इसके पाठसे इस बातका भी पता चल जायगा कि जैन शास्त्रों के कथा- विवरणों में कितना ऐतिहांसिक सत्य विद्यमान है और इस लिए भारतके इतिहास निर्माणमें उनका महत्व कितना बड़ा चढ़ा है। मुख्य बात तो जैन शास्त्रोंमें दृष्टव्य यह है कि जहां उन्होने अन्य धर्मोंका वर्णन किया है वहां वह यथार्थ रूपमे है । पारस्परिक विरोधके कारण जैन ऋषियोंने अन्य धर्मी मान्य लेखकोमें अधिकांशकी भांति किसी भी धर्मके सिद्धान्तो वा घटनाओका चित्र चित्रण नहीं किया है। प्रत्युत उनकी समलोचना यदि की है तो समुचित रीत्या की है। इसी लिए तो आजकल भी गण्यमाण्य विद्वानोंको मानना पड़ा है कि:
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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