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शैशव काल और युवावस्था ।
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सब देवनमें सूर ।
"तब हरजू ऐसे कही, वीर स्वामि अब है सही, महागुण कर पूर ॥
इम सुन समघदेव तथ, मन संशय उपजाय । लैन परीक्षा तासकी, धरणी पर तब आय ॥” हिन्दी उत्तरपुराण इस कथानकके अतिरिक्त एक अन्य और है जिससे प्रकट होता है कि भगवान महावीरने एक मदमद नामक मत्त हाथीको बातकी चातमें बांध लिया था । फलतः इनसे भगवानके विशाल पराक्रमका भास साफ प्रगट हो जाता है ।
भगवानकी शिक्षाके सम्बन्धमें हम देख चुके हैं कि भगवान अपने पूर्व जन्मोके शुभकृत्योंके प्रभावसे एक उत्कृष्ट बुद्धिको लिए हुए जन्मे थे । और उनके समान उस समय कोई भी विद्वान नहीं था। वे जन्मसे ही मति श्रुति अवधि ज्ञानके धारक थे। महावीरपुराण अध्याय आठवेंमें जो यह उल्लेख है कि भगवान प्राचीन काव्योंका अध्ययन शैशव कालसे ही किया करते थे, उससे विदित होता है कि वे शिक्षामे पूर्ण दक्ष ये जैसे कि उनके पिता थे ।
इस प्रकार "बढ़ते हुए भगवान अपनी चपलता को दूर करने के लिए स्वयं उयुक्त हुए | और शैशवको लांघकर क्रमले उन्होने नवीन यौवन लक्ष्नीको प्राप्त किया । उनका नवीन कनेरके समान है वर्ण जिसका ऐसा सात हाथका मनोज्ञ शरीर, नि स्वेदता ( पसीना न आना ) आदि स्वाभाविक दश अतिशय से + युक्त था।
+ (१) मलमूत्ररहित शरीर (२) पसीना न जाना (३) दूत्रके सन न क (४) वजवृषभनाराच संहनन (५) समचार संस्थान (६) अनुन रूप (७) अतिशय सुगंधता ( : ) १०८ लक्षण - शरीर (९) तं (१०) प्रियहिर वचन ।