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________________ शैशव काल और युवावस्था । ७९ पहिले देख आए हैं कि वे अपने पूर्वभवोंमें उत्कृष्ट शुभ कृत्य करनेके कारणोंवश जन्मसे ही विशेष गुणोंसे विभूषित होते हैं । भगवान महावीर एक समुन्नत और परमोदार, प्रेमी और घीर बीर सुन्दर और सौम्य राजकुमार थे । वे जन्मसे ही तीन ज्ञानके धारक परमोच्च विद्वान थे । इसलिए उनको किसी गुरुके निकट विद्याध्ययन 'करनेकी आवश्यक्ता नहीं थी । उनके विषयमें दिगम्बर और वे - -ताम्बर दोनों आम्नाओंसे यह विदित है कि प्रभूने तीस वर्ष पर्य्यन्त एक धार्मिक श्रावकका पवित्र जीवन व्यतीत किया था । और इस समय अपने पिताके राजषी ठाठबाठका उपभोग किया था । आठ वर्षसी छोटी अवस्थासे ही आपने श्रावकके बारह व्रतोंको पालन करनेका व्रत ग्रहण कर लिया था । वे अपने बाल्यकालसे ही बड़े धार्मिक पुरुष थे और कभी भी शील और संयमके मार्गसे विचिलित नहीं हुए थे। उनके जीवनका उद्देश्य ही यह था कि अपने जीवनसे लोगोंको - प्रत्यक्षमें एक आदर्श जीवनका पाठ स्वयं नमूना बनकर सिखावें । आपकी माताकी सेवाके लिए देवियां आई थी और रोचक द्वीपकी ५६ कुमारियां आपकी सेवा सुश्रूषा किया करती थीं । क्रमशः । आप अपनी बचपनकी अवस्था को त्याग कर बालकपनेको प्राप्त हुए थे। इस अवस्थामें पहुंचकर आपने व्रतों का दृढ़ अभ्यास रखनेके साथ ही साथ बाल्यकालीन क्रीड़ाएं करना प्रारंभ कर दी थी। वे राजकीय बगीचों में अपने सहचरोंके साथ जाया करते थे और वहां विविध प्रकारके कौतूहलपूर्ण शारीरिक खेल खेला करते थे। इनके सहचरोमें आपके पिता के मंत्रियोके पुत्र भी थे । उनका शरीर सुन्दर और सुडौल था । मुख चित्ताकर्षक था । उनका बल
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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