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________________ शैशव काल और युवावस्था। ७७ (१५) হশহীহ-ক্রান্ত জয় युकास्था। "fan is heaven born, not the thrall of oircumstances and of neccssitics, but the victorious subduer thercof; behold! hom ho can become the Announcer ot himself and of his Tiedom." - Carlyle. मनुप्य देवी जन्मधारक है । संयोगो और आवश्यक्ताओंका गुलाम नहीं है । बल्कि उनका विजयी जेता है । देखो ! वह अपनी स्वतंत्रताको और अपने ( आत्मिक) व्यक्तित्वको घेसी रीतिसे दुनिया के समक्ष प्रगट कर सका है।' आधुनिक तत्ववेत्ता कारलायलके कितने मार्मिक शब्द हैं। प्रत्येक जैन का यह दृढ़ विश्वास होता है कि वह अनन्तशक्ति और अनन्त सुख शांतिका अधिकारी है। जो कुछ भी परिस्थिति है वह स्वयं उसका निर्माता है । वह अपने ही कृत्योसे अपनेको सर्वोत्कटतामें एधरा सक्ता है और अपनी ही विषयाशक्यादि कृत्योसे घोर नीचताके गर्तमें पहुंचजाता है । यह निश्चय उनको भगवान महावीरके उपदेशसे प्राप्त हुआ है। अस्तु, गगवान महावीर भारतवर्षके महान्पुरुषोमे सर्वाग्रगण्य गिने जाने योग्य हैं । परन्तु भारतके हतभाग्य कि उनके विषयमे अनेक भ्रम फैले हुए हैं। कई लोग उन्हें जन्मसे ही देव होना प्रगट करते हैं । और' कोई उनके अस्तित्वको भी स्वीकार नहीं करते ! परन्तु इसके
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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