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________________ अफ्रीकामें आये थे, तब मैंने अनसे पूछा था कि आपके प्रान्तमें सत्यनिष्ट लोग कौन कौन हैं ? अन्होंने कहा था कि मैं अपना नाम तो दे ही नहीं सकता / मैं कोशिश तो करता हूँ कि सत्य पथ पर ही चले, लेकिन राजनीतिके मामलेमें कभी कभी असत्य मुँहसे निकल ही जाता है। मैं जिनको जानता हूँ, अनमें तीन आदमी पूरे पूरे सत्यवादी हैं : अक प्रोफेसर कर्वे, दूसरे शकंरराव लवाटे (ये मद्य-निषेधका कार्य करते थे।) और तीसरे . . . / ' आगे बोले - 'सत्यनिष्ठ लोग हमारे लिओ तीर्थ-जैसे हैं / सत्याग्रह आश्रमकी स्थापना सत्यकी अपासनाके लिओ ही है / जैसे आश्रममें कोसी सत्यनिष्ठ मूर्ति पधारे, तो हमारे लिअ वह मंगल दिन है।' बेचारे कर्वे तो गद्गद हो गये / कुछ जवाब ही नहीं दे सके / कहने लगे-'गांधीजी, आपने मुझे अच्छा झेपाया। आपके सामने मैं कौन चीज हूँ?' सन् '३०में मैं. यरवडा जेलमें बापूके साथ रहनेके लिऔ भेजा पया / मैं अपने साथ काफी पूनिया ले गया था। वहाँ मुझे पाँच महीनेसे ज्यादा नहीं रहना था / मेरी पूनियाँ अितनी थीं कि पाँच महीने मुझे बाहरसे मँगवानेकी जरूरत नहीं रहती / लेकिन हुआ यह कि कुछ ही दिनोंमें सरकारने श्री वल्लभभाभीको भी यरवडा जेलमें लाकर रख दिया। शुनके और हमारे बीच थी तो सिर्फ अक ही दीवाल; लेकिन हम मिल नहीं सकते थे / बापूको भिसका बहुत ही बुरा लगता / कहते -- 'यह सरकार कैसी तंग कर रही है! वल्लभभासीको साबरमतीसे यहाँ ले आयी / हम उनकी आवान भी कभी कभी सुन सकते हैं, किन्तु मिल नहीं सकते / सरकारको अिसमें क्या मजा आता होगा ?' जो लोग बापूको दूरसे ही देखते हैं, वे अनकी धीरोदात्तता ही देख सकते है / सुनका प्रेम कितना अत्कट है और असपर आघात लगनेसे वे कितने घायल होते हैं, यह तो बाहरके लोग नहीं जान सकते। बापू जब 100
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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