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दुर्बल वह, छिनती संतान जब। जन्म पर अपने अभिसप्त,
तप्त आँसू बहाती है।" निराला की काव्य शैली उनके काव्य-व्यक्तित्व के आधार पर कई रूपों में अभिव्यक्त हुई है, सबसे वह स्वछन्द विद्रोहिणी शैली है जो उनके विद्रोही व्यक्तित्व व तद्रुप काव्य-वस्तु का प्रतिनिधित्व करती है निराला की काव्य-शैली का यह कदाचित् यह सबसे अधिक सशक्त स्वरूप है, मानव जीवन की सारी विशेषताओं और रूढ़ियों का आपात विनाश करने वाली भाव-चेतना इसी शैली का आश्रय लेकर प्रस्फुटित हुई है, निराला ने अपने इस काव्य शैली के माध्यम से मानव के पौरूष अंशरूपी प्रतीक को उद्धृत किया है। यहाँ कवि अपने आवेगमय कविता के माध्यम से एक दृष्टान्त प्रस्तुत करते हुए जनमानस से यह प्रश्न करता है कि ऐसी शक्ति या साहस किसमें है जो सिंहनी की गोद से उसके बच्चे को बल-पूर्वक ले सके, क्या सिंहनी अपने जीते जी ऐसा होने देगी? फिर उन्होनें भेड़ का दृष्टान्त देते हुए कहा कि सिर्फ भेड़ ही ऐसा करने देगी और वह-पुत्र-वियोग में तड़प-तड़प कर मर जाती है। फिर पुनः प्रश्न करता है कि क्या शक्तिशाली मानव अत्याचार सहकर भी जीवित रह सकता है कदापि नहीं। अर्थात् कवि का स्पष्ट सन्देश अपने देशवासियों के प्रति है कि वीरभोग्या बसुन्धरा! इस प्रकार निराला जी अपने देशवासियों का आह्वान करते हैं कि अपनी मिट्टी, अपनी संस्कृति एवं अपने पौरूष पर भरोसा करें, उनका समस्त काव्यरूपी व्यंग्य वाण चाटुकार भारतीयों के ऊपर होता था। वे उनके जमीर को काव्यमयी व्यंग्य बाण से झकझोरते थे और राष्ट्र की मुख्य धारा में
1. जागो फिर एक बार (2) : परिमल : निराला रचनावली भाग (1) पृ0-153