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________________ "भूषन भार सम्हारिए, क्यों यह तन सुकुमार, सूखें पॉव न धरि परै, शोभा ही के भार ।। " दार्शनिक दृष्टिः– जिस प्रकार निराला जी प्रकृति में नारी का सौन्दर्य देखते थे उसी प्रकार उनकी रहस्यमयी कविताओं में दर्शन का पुट स्वयमेव झलकने लगता होगा फिर से दुर्घर्ष समर; जड़ से चेतन का निशिवासर । कवि का प्रतिदिन से जीवन-भर; भारती इधर है उधर सकल । जड़ जीवन के संचित कौशल; जय ईधर, ईश है उधर सबल माया कर ।। " " व्यक्ति की भाँति ही सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन के दैन्य- दुरित निवारण हेतु उनके अन्तस् का करूणा - सागर विक्षुब्ध हो उठता था। तभी जड़ता की रावणीवृत्तियों से चेतना के रामत्व का शास्वत संघर्ष कराते हैं और जीवन की हरीतिमा को चर जाने वाली प्रत्येक शक्ति से यावज्जीवन लड़ने की चुनौती स्वीकार करते हैं। वह त्रेता का मिथक है, मध्य-युगीन संस्कृति की आकांक्षा है, और आधुनिक युग की आवश्यकता भी है। संचित कौशल की जड़ता उनकी सारस्वत - साधना के चरण- - चूमती है। मायाबी कितना ही बलवान 1. तुलसीदास : निराला रचनावली भाग ( 1 ) पृष्ठ - 305 मासिक पत्रिका 'सुधा' सन् 1934 ई0 555
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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