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________________ भाव-मीमांसाः- भारतीय दृष्टि से लौंजाइनस का भावावेगों को महत्व देते हुए अलंकार गुण-दोष आदि की मीमांसा करना विशेष महत्वपूर्ण है। यद्यपि लौंजाइनस ने मूलतः औदात्य को लक्ष्य माना है, पर भावावेगों के उद्वेलन एवं तज्जन्य आनन्द की बात भी उन्होंने स्थान-स्थान पर की है जो भारतीय रस-सिद्धान्त के अनुकूल है। जहाँ औदात्य की व्यापक रूप से प्रतिष्ठा करते हुए लौंजाइनस ने उसका संबंध व विचार, भाव शैली आदि सभी पक्षों से स्थापित करने का महत्व पूर्ण कार्य किया है, वहाँ उनकी यह सीमा भी है कि ऐसा करते समय उन्होने औदात्य के मूल क्षेत्र को भूला दिया है। औदात्य का मूल अर्थ है उच्च-विचार या ऐसी भावनाएँ जो त्याग आत्म-बलिदान या परोपकार की प्रेरक हों, इस दृष्टि से औदात्य एक चारित्रिक या नैतिक तत्व है। उसका कला से सीधा संबंध नहीं हैं महर्षि दयानन्द सरस्वती के विचारों में या महात्मा गाँधी के जीवन-चरित में पर्याप्त मात्रा में औदात्य के होते हुए भी यह आवश्यक नहीं है कि कलात्मक सौन्दर्य से युक्त हो, कला का प्राथमिक गुण सौन्दर्य है, औदात्य उसका अतिरिक्त गुण है। फिर कला या काव्य में औदात्य को स्थान औदात्य के कारण नहीं अपितु उसके काव्य सौन्दर्य के कारण ही मिलता है, अन्यथा नहीं, उदाहरण के लिए कबीर की निम्नांकित उक्ति को लीजिए "माली आवत देखि कै कलियाँ करें पुकार। फूले-फूले चुनि लिए कालि हमारी बार ।।" यहाँ जिस उदात्त विचार की अभिव्यक्ति की गयी है वह अपने कलात्मक सौन्दर्य के कारण ही स्वीकार्य है, अन्यथा नहीं। यदि कोई अभिधा लिख दे हम सबको मरना है अतः संसार का मोह छोडो- तो यह वाक्य काव्य की कोटि में नहीं आएगा। यद्यपि इनमें औदात्य है।
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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