________________
चलकर इन्हीं के आधार पर उदात्त के विपरीत रूप 'उपहास्य' का विवेचन किया गया । '
अभिव्यक्ति में क्षुद्रताः- इसी प्रकार अभिव्यक्ति की क्षुद्रता अत्यधिक संक्षिप्तता जडाव संगीत तथा लय का आधिक्य भी उदात्त - शैली के लिए घातक सिद्ध होते हैं । अभिव्यक्ति की क्षुद्रता का अर्थ है, क्षुद्र अर्थ के वाचक शब्दों का प्रयोग | उदात्त - विषय के अनुरूप उदात्त - शैली में निकृष्ट और कुत्सित अर्थ के वाचक शब्द 'भाषा पर कलंक' से प्रतीत होते हैं। साथ ही उक्ति की अत्यधिक संक्षिप्तता से भी उदात्तता का ह्रास होता है क्योंकि बहुत ही संकीर्ण घेरे मे विचार को हँसने से भी गरिमा नष्ट हो जाती है। "यह आरोप समास - शैली के विषय में नहीं है जो कि शैली का गुण है," "वरन् ऐसी उक्ति के विषय में है जो सर्वथा क्षुद्र और छोटे-छोटे भागों में खण्डित हों, क्योंकि शब्दों की अल्पता अर्थ को संकुचित कर देती है।" यही बात जड़ाव के विषय हैं। ऐसे शब्द जो एक - दूसरे से बहुत सटे हुए हों, छोटे-छोटे अक्षरों में विभक्त हों और नितान्त विषमता और कर्कशता के द्वारा मानों लकड़ी की कीलों से एक दूसरे के साथ जड़े हों, उदात्त शैली के दूषण होते हैं और अन्त में लय एवं संगीत का आधिक्य भी उदात्त के प्रभाव को नष्ट कर देता है, इसके कारण उक्ति में एक प्रकार की अतिशय सुकुमारता कृत्रिमता और एक - रसता उत्पन्न हो जाती है। और श्रोता का ध्यान विषय-वस्तु से हटकर लय एवं संगीत पर केन्द्रित हो जाता है।
जैसा कि पीछे संकेत किया जा चुका है ग्रीक - साहित्य चिन्तन परम्परा में लौंजाइनस पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने काव्य-वस्तु एवं काव्य - गरिमा का संबन्ध रचयिता के व्यक्तित्व से स्थापित करते हुए उसे महत्व प्रदान किया। उनसे पूर्व अरस्तू ने अनुकृति सिद्धान्त द्वारा प्रकृति को ही काव्य का आधार - स्रोत मानते
1. काव्य में उदात्त तत्व ( डॉ० नगेन्द्र ) - पृष्ठ - 109
23