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________________ प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में निराला के काव्य में उदात्त- तत्व की सर्जनात्मक अभिव्यक्ति, विशेषकर लौंजाइनस के उदात्त-तत्व सिद्धान्त के आधार पर, को व्याख्यायित करने का प्रयास किया गया है। यह विश्वास है कि इस दृष्टि से निराला काव्य का अध्ययन करने का यह प्रथम प्रयास है। इस शोध-प्रबन्ध में कुल चार अध्याय हैं, प्रथम अध्याय में उदात्त-प्रकृति और पाश्चात्य विद्वानों के मतों, विशेषकर लौंजाइनस के उदात्त-सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण किया गया है। दूसरे अध्याय में निराला की काव्य-विकास की सर्जनात्मक अभिव्यक्ति को क्रमवार प्रस्तुत किया गया है। तीसरे अध्याय में निराला काव्य में उदात्त-तत्व को लौंजाइनस के उदात्त-सिद्धान्त के पॉचों प्रतिमानों पर कमवार साधने का प्रयास किया गया है, और इस चौथे अध्याय में पिछले तीनों अध्यायों का समाहार प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रथम अध्याय में उदात्त-शब्द की व्युत्ति उसका स्वरूप और कोश ग्रन्थों के आधार पर 'उदात्त' शब्द का सामान्य अर्थ तथा उसके अंग्रेजी पर्याय 'सब्लाइम' के अर्थ की विस्तृत विवेचना की गयी है। लौंजाइनस के नाम से जो ग्रन्थ सम्बद्ध है उसका नाम है 'पेरिहुप्सुस' जो 1954 में प्रकाशित हुआ था। यह मूल रूप से यूनानी में लिखी गयी है, उसका अंग्रेजी अनुवाद 'सब्लाइम' के नाम से जाना जाता है तथा जिसका शाब्दिक अर्थ है-'उदात्त'। लौंजाइनस के पहले जिन लोगों ने उदात्त का निरूपण किया था उनमें एक नाम 'केकिलियुस' था किन्तु उनमें लौजाइनस को अनेक त्रुटियाँ परिलक्षित हुई। किन्तु यह भी सच है कि 'पेरिहुप्सुस' की रचना में केकिलियुस का बहुत बड़ा योगदान है 'पेरिहुप्सुस' लगभग साठ पृष्ठों की लघुकृति है जिसमें कुल छोटे-बड़े 44 अध्याय हैं। लौंजाइनस से पूर्व कवि का मुख्य-कर्म पाठक या श्रोता को आनन्द तथा शिक्षा प्रदान करना तथा गद्य लेखक या वक्ता का मुख्य-कर्म अनुनयन समझा 173
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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