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कि साहित्य का संबंध तर्क से नहीं है, वह कल्पना द्वारा पाठक को अभिभूत करता है, यदि उसने 'इलियट' को 'ओडैसी' से डिमोस्थनीज को सिसरो से श्रेष्ठ माना तो इसका कारण यही था कि 'इलियट' में जीवन - आवेग प्रगाढ अनुभूति, गति शक्ति और वेग तथा यथार्थ बिम्ब- विधान 'ओडैसी' से कही अधिक थे। इसी प्रकार सिसरो की शैली शिथिल और सामान्य से भाराकान्त थी, तो डिमोस्थनीज की शैली में जीवन, आवेग, गति, तत्परता, प्रचुरता आदि गुण थे, जिनके कारण पाठक की चेतना पूर्णतः अविभूत हो जाती थी।
लौंजाइनस ने 'उदात्त' की कोई परिभाषा नहीं दी है, उसे एक स्वतः स्पष्ट तथ्य मानकर छोड़ दिया है। उनका मत है कि उदात्ता साहित्य के हर गुणों में महान है, यह वह गुण है जो अन्य क्षुद्र त्रुटियों के बावजूद साहित्य को सच्चे अर्थो में प्रभावपूर्ण बना देता है। उनकी यह दृष्टि व्यावहारिक तथा मनौवैज्ञानिक दोनों प्रकार की थी, अतः उसने एक ओर उदात्त के बहिरंग तत्वों की चर्चा की, दूसरी ओर उसके अंतरंग तत्वों की ओर भी संकेत किया। उदात्त के इस विवेचन में उन्होनें पाँच बातों को आवश्यक ठहराया:
(1) महान धारणाओं या विचारों की क्षमता |
( 2 ) भावावेग की तीव्रता ।
(3) समुचित अलंकार - योजना |
(4) उत्कृष्ट-भाषा ।
(5) गरिमामय रचना - विधान |
इसमें से प्रथम दो जन्मजात हैं, अतः उदात्त के अन्तरंग पक्ष के अन्तर्गत आते हैं। तो शेष तीन कलागत् है और बहिरंग के अन्तर्गत आते हैं। उन्होंने अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए उन तत्वों का भी उल्लेख किया है जो औदात्य के विरोधी हैं। इस प्रकार उनके उदात्त के स्वरूप विवेचन के तीन पक्ष हो जाते हैं।
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