SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जागी योगिनी अरूप लग्न; वह खडी शीर्ण प्रिय भाव -मग्न निरूपमिता । । "1 यहाॅ कवि निराला ने कामाविभूति तुलसीदास के आगमन से क्रुद्ध एवं दुषित रत्नावली की रोषपूर्ण मूर्ति का चित्रण करते हैं। यहाँ उनके विचारों एवं पद - विन्यास में अद्भुद सामंजस्य दिखायी देता है। साथ ही भाषा प्रवाह एंव कथन की भंगिमा को एक उदात्त-स्वरूप भी प्रदान करता है। निराला काव्य में रूपक - योजना : भारतीय साहित्य में रूपकों का प्रयोग यद्यपि नया नहीं है, किन्तु निराला के यहाँ इनका प्रयोग बिल्कुल नए सन्दर्भ के साथ प्रस्तुत हुए हैं। प्रायः सभी कवियों ने रूपकों के माध्यम से अपनी कल्पना को सर्जनात्मक आयाम दिया है भारतीय साहित्य में प्रकृति और रूपक का गहरा संबंध रहा है। अप्रस्तुत कल्पना और बिम्ब प्रकृति के माध्यम से सर्जनात्मक अभिव्यक्ति पाते रहते है; उदाहरण के लिए निराला की 'यामिनी जागी' शीर्षक कविता को ले सकते हैं : (प्रिय) 'यामिनी जागी। असल पंकज - दृग अरूण - मुख; तरूण- अनुरागी । खुले केश अशेष शोभा भर रहे, पृष्ठ - ग्रीवा - बाहु - उर पर तर रहे, बादलों में घिर अपर दिनकर रहे, 1. 'तुलसीदास' : निराला रचनावली भाग एक : पृष्ठ 151 - 302
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy