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प्रकार का आलोक प्रदान करते हैं। उत्कृष्ट भाषा की विभिन्न विशेषताओं के अन्तर्गत् सुन्दर शब्दावली के अतिरिक्त ओज प्रवाह- पूर्णता, रूपकों का सीमित प्रयोग, उपमानों एवं अति-युक्तियों का उचित प्रयोग आदि को स्थान दिया गया हैं। वस्तुतः भाषा के विभिन्न गुणों की उपयोगिता औदात्य की सृष्टि में है यदि उसके ये गुण इस लक्ष्य की पूर्ति करते हैं तो स्वीकार्य है अन्यथा नहीं।
निराला ने जीवन-साहित्य एवं समाज की ही भाँति कला के क्षेत्र में भी रूढ़ियों एवं परम्पराओं को स्वीकार नहीं किया, उन्होंने भाषा छन्द शैली प्रत्येक क्षेत्र में मौलिकता, नवीनता का समावेश करने का प्रयत्न किया है। चाहे वह भावपक्ष हो या कला पक्ष दोनों ही क्षेत्रों में हिन्दी साहित्य को छायावाद ने महत्वपूर्ण योगदान किया हैं कला-पक्ष के क्षेत्र में निराला ने नवीन भाषा शक्ति, मौलिक छन्द-विधान एवं नवीन अलंकार शैली को जन्म दिया, यह कहा जा सकता है कि निराला साधनावस्था के कवि हैं। निराला की प्रकृति शक्ति-सामर्थ्य और मुक्ति के अनुकूल हैं, “प्रकृति के अनुसार भाषा-भिन्न होगी लेकिन उसे प्रत्येक दशा में जातीय-जीवन से सम्बद्ध होना जरूरी है। जातीय जीवन का अर्थ अतीतोत्मुखता नहीं है बल्कि इसके जीवन के अन्तर्गत् विकासोन्मुख राष्ट्र की वे समस्त आकांक्षाएं समाहित है जो उसकी संस्कृति को अलग रूप देती हैं जातीय जीवन से अनुप्राणित भाषा के अनेकानिक संबंधों को व्यक्त करने में अधिक अर्थ–पूर्ण हो जाती है।" 'राम की शक्ति पूजा' 'सरोज-स्मृति', 'तुलसीदास', 'जागो फिर एक बार', आदि की तो बात ही और है, कहीं से कोई कविता उठा लीजिए उसकी शब्दावली जातीय जीवन का समग्र बोध कराती है।
1. कान्तिकारी कवि निराला : डॉ0 बच्चन सिंह : पृष्ठ - 145
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