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प्रकाश का वरण कर रही हूँ यह मेरा मरण नहीं है, अपितु आज आप की पुत्री ज्योति के शरण में जा रही है। यहाँ कवि निराला सरोज की मृत्यु के प्रति एक दार्शनिक दृष्टिकोण दर्शाते हैं। साथ ही कवि की अर्न्तरात्मा की वेदना स्वतः परिलक्षित होती है। यहाँ जीवन-सिन्धु तथा मृत्यु तरूणी में रूपक अलंकार दृष्टिगोचर होता है।
कवि निराला जहाँ अधिक या कुछ पेचीले अर्थ रखने का प्रयास किया है वहाँ पद-योजना उस अर्थ को दूसरों तक पहुंचाने में प्रायः अशक्त या उदासीन पायी जाती है। 'गीतिका' की यह पंक्ति
कौन तम में पार? (रे-कह) x x x
सार या कि असार (रे-कह) ।। यहाँ कवि रूप के बाण (यानी सौन्दर्य बाण को निकालना) को निकालने में एक अजीब प्रकार का सुख प्राप्त करता है। साहित्यकार 'रामचन्द्र शुक्ल' के अनुसार तीर के निकलने में सुखानुभूति निराला जैसा कवि ही कर सकता है।
'उपमा' :
जब दो भिन्न वस्तुओं में एक ही साधारण धर्म का होना बताया जाए अर्थात् सामानता बताई जाए, तब उपमा अलंकार होता है। "उपमेय अरू उपमान जह एक रूप होई जाए"।
कवि निराला का सम्पूर्ण काव्य राष्ट्र-भावना से ओत-प्रोत था उसी कम में उनकी कविता 'छत्रपति शिवाजी महाराज का जयसिंह के नाम पत्र' के माध्यम से भारतीयों के वर्तमान को कुरेदने का सफल प्रयास किया है। कवि
1. कौन तम के पार : गीतिका : हिन्दी साहित्य का इतिहास
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