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कुन्दकुन्दाचार्यके तीन रत्न ( अर्थात् चिकना और उष्ण, या चिकना और शीत अथवा मूखा और शोत )। (पं० ८१)। इन परमाणुओंमें से चिकना परमाणु और रूखा परमाणु मिलकर द्वयणुक बनता है और इसी प्रकार त्र्यणुक आदि स्कन्ध बन जाते हैं । परमाणुओंकी स्निग्धता और रूक्षता परिणमनको प्राप्त होती हुई एक अंशसे अनन्त अंशवाली तक बन जाती है। इसमें से दो, चार, छह आदि सम प्रमाणवाली या तीन, पाँच, सात आदि विषम प्रमाणवाली स्निग्धता या रूक्षतावाले अणु स्निग्धता या रूक्षतामें दो अंश अधिक परमाणुओंके साथ आपसमें मिल जाते हैं; परन्तु एक अंश स्निग्धता या रूक्षतावाले, दूसरेके साथ नहीं मिल सकते। उदाहरणार्थ-दो अंश स्निग्धतावाला अणु चार अंश स्निग्धतावाले दूसरे अणुके साथ मिल सकता है। इसी प्रकार तीन अंश रूक्षतावाला अणु पाँच अंश रूक्षतावाले अणुके साथ मिल सकता है। इस प्रकार दो आदि प्रदेशवाले पुद्गल स्कन्ध विविध परिणमनके अनुसार सूक्ष्म या स्थूल तथा भिन्न-भिन्न प्रकारको आकृतिवाले पृथ्वी, जल, तेज या वायुके रूपमें पलट जाते हैं। (प्र. २, ७१-५)
परमाणुसे कालके परिभाषाका ज्ञान होता है ( क्योंकि परमाणुको आकाशके एक प्रदेशसे दूसरेमें जानेमें जितना काल लगता है, वह कालांश, समय कहलाता है) परमाणु द्रव्य आदिकी संख्या-गणनाका भी कारण है ( क्योंकि स्कन्ध, परमाणुओंसे बनता है, अतएव परमाणुओंको संख्याके आधारपर ही द्रव्यको संख्या जानी जा सकती है )। क्षेत्रका परिमाण भी परमाणुसे नापा जाता है, क्योंकि वह आकाशके एक ही प्रदेशमें रहता है। इसी प्रकार परमाणुमें रहनेवाले वर्ण आदिसे भाव-संख्याका भी बोध होता है (पं०८०) __ परमाणु स्कन्धके रूपमें परिणत होनेपर भी स्कन्धसे भिन्न है। इन्द्रियभोग्य पदार्थ, इन्द्रियाँ, पाँच शरीर, मन, कर्म तथा अन्य पदार्थ जो मूर्त हैं, सभी पुद्गलरूप हैं (पं० ८२)