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कुन्दकुन्दाचार्यके तीन रत्न
स्कन्ध दो प्रकारके होते हैं - बादर और सूक्ष्म । बादर स्कन्ध वह है जो इन्द्रियोंका गोचर हो सके । जो स्कन्ध इन्द्रियगम्य नहीं है वह सूक्ष्म स्कन्ध है । दोनों प्रकारके स्कन्ध, व्यवहार में पुद्गल कहलाते हैं । इन दोनोंके सब मिलाकर छह वर्ग होते हैं जिनसे त्रैलोक्यको रचना हुई है । वह छह वर्ग इस प्रकार हैं
१. बादर-बादर - जो एक बार टूटनेके पश्चात् जुड़ न सके, जैसे लकड़ी, पत्थर आदि -आदि ।
२. बादर - टूटकर अलग होनेके पश्चात् जुड़ जानेवाला, जैसे प्रवाही पुद्गल ।
३. सूक्ष्म बादर - जो देखने में स्थूल हो मगर तोड़ा-फोड़ा न जा सके या जो पकड़ में न आ सके, जैसे धूप, प्रकाश आदि ।
४. बादर- सूक्ष्म - सूक्ष्म होते हुए भी जो इन्द्रियगम्य हो, जैसे रस, गन्ध, स्पर्श आदि ।
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५. सूक्ष्म - जो पुद्गल इतना सूक्ष्म हो कि इन्द्रियों द्वारा, ग्रहण न किया जा सके, जैसे कर्म वर्गणा आदि ।
६. सूक्ष्मसूक्ष्म - अति सूक्ष्म, जैसे कर्मवर्गणासे नीचेके द्वयणुक पर्यन्त पुद्गल स्कन्ध |
परमाणु - स्कन्धोंका अन्तिम विभाग - जिसका विभाग न हो सके - परमाणु कहलता है । परमाणु शाश्वत है । शब्दरहित है । एक है । रूप, रस, स्पर्श और गन्ध उसमें पाया जाता है, इसलिए वह मूर्त है । परमाणुके गुण कहने में ही अलग-अलग हैं, परन्तु परमाणुमें उनका प्रदेशभेद नहीं है - सभी गुण एक ही प्रदेशमें रहते हैं । परमाणु पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु, इन चार धातुओंका कारण है ( अर्थात् पृथ्वी आदिके
१. कर्म अर्थात् सूक्ष्म रज । कर्मबन्धनमें इसी कर्मवर्गणा अर्थात् सूक्ष्म रजका सम्बन्ध होता है !