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करते हैं कि वह प्राणिमात्र का प्राण करने वाला और इसी लिए विश्वधर्म बनने के योग्य है । दूसरी ओर उसे इतने संकीर्ण रूप में चित्रित करते हैं कि विश्व को जीवन देने वाले कार्य करने वालों को भी धर्म की परछाई से अलग कर देना चाहते हैं । हमारे यह परस्पर विरोधी दावे चल नहीं सकते। जिन भगवान् ने प्राणी मात्र के लिए धर्म का उपदेश दिया है। अतएव जिन कार्यों से दूसरों का अनिष्ट नहीं होता, वरन् रक्षा होती है, ऐसे उपयोगी कार्य करने वाले धर्मबाहय नहीं कहला सकते,जव कि वे धर्म का पाराधन करने के इच्छुक हों।
खेती और हिंसा
बहुत से लोगों की यह धारणा है कि खेती का काम हिंसा जनक होने के कारण त्याज्य है। खेती में असंख्य त्रस जीवों का और स्थावर जीवों का घात होता है । अतएव स जीवों की हिंसा का त्यागी श्रावक खेती नहीं कर सकता। श्रावक को अपने जीवन निर्वाह के लिए अल्प-आरंभ वाली आजीविका करनी चाहिए, जिसले धर्म की साधना भी हो और जीवननिवीह भी हो। ऐसी विचारधारा से प्रेरित होकर लोगों का ध्यान प्रायः सट्टे की ओर जाता है। सट्टे में न आरंभ है, न हिंसा है। न कुछ करना पड़ता है, न धरना पड़ता है। न लेन, न देन, फिर भी लाखों का लेनदेन हो जाता है। लोग सोचते हैं-कहाँ तो छासीम हिंसा का कारण महारंभ