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[४७ ] हिंसानी कोटिमां ावी जाय छे. पण जो श्रेनी इच्छा-भावना अनाज पकवानी हाय जे प्रजाना धारण पोषण माटे होई अनिवार्य छ- तो खेतीमां थती हिंसा बाधक नथीज. जेम बालवामां, बोलवामां, श्वास लेवामां, हिंसा थाय छे अने तेने आपणे रोकी शकता नथी, तेमज खेती अनिवार्य होवाथी अने शपणे रोकी शकीज नहिं.
ऊपर जणावेली हिंसानी व्याख्याथी अटलं तो जरूर -फलित थाय छे के खेती से वर्ण्य अवी मोटी हिंसा नथी. __ खेतीनो विरोध जैन अने ब्राह्मण विचारको कर्यो, पण ते तो आदर्श अहिंसा ने माटे छे. जे माणसे संसार त्याग्यो होय, अन्न अने पाणी पण खूबज परिमित लेतो होय, अने जेने माटे जीवन श्रेअक समस्त त्यागज वनी गयु होय ओने माटे खेती वर्ण्य होई शके, जनसमुदाय माटे नहि.
खती आदर्श अहिंसक माटे निविद्ध छ, परन्तु गृहस्थनी मर्यादनी वहार नथी. जैनधर्मश्राचारप्रधान छे; अने प्राचारनी वे मुख्य कोटि पाडी नाखी छे-श्रमणनो आचार ,अने श्रावकनो आचार. श्रमणनो श्राचार खूब कडक होय छे, खूब संयम जालववानो होय छे-जेम ब्राह्मणधर्ममां चार वर्णो पैकी ब्राह्मणने खूब संयम जालववानो होय छे-जेटलो श्रादर्श होय श्रे वधो कई श्रावकथी आचरी शफातो नथी, वल्के खूबज ओछो आचरी शफाय छे. श्रमण, श्रावकथी वधारे अहिंसा पाली शके, कारण के ग्रेनो त्याग मोटे छ;