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तं तपनामकर्म के उदय का सम्भव नहीं और जिस समय तपनामकर्म का सम्भव होता है उस समय उन को सास्वादन सम्यक्त्व का सम्भव नहीं है । तथा मिथ्यात्व का उदय पहले गुणस्थान में ही होता है किन्तु सास्वादन सम्यक्त्व पहले गुणस्थान के समय, कदापि नहीं होता । इससे मिथ्यात्व के उदय का और सम्यक्त्व का किसी भी जीव में एक समय में होना असंभव है । इसी प्रकार नरकश्रानुपूर्वी का उदय, वक्रगति से नरक में जानेवाले जवां को होता है । परन्तु उन जीवों को उस अवस्था में सास्वादन - सम्यक्त्व नहीं होता । इससे नरक - श्रानुपूर्वी का उदय और सास्वादन - सम्यक्त्व इन दोनों का किसी भी जीव में एक साथ होना असम्भव है । अतएव सासादनसम्यग्टष्टिनामक दूसरे गुणस्थान में सूक्ष्म- नामकर्म से लेकर नरक- श्रानुपूर्वीपर्यन्त ६-कर्म- प्रकृतियों के उदय का निषेध किया है, और पहले गुणस्थान की उदययोग्य कर्म - प्रकृतियों में से उक्त ६ - प्रकृतियों को छोड़कर, शेष कर्म - प्रकृतियों का उदय दूसरे गुणस्थान के समय माना गया है । अनन्तानुबन्धी-कषाय का उदय पहले और दूसरे गुणस्थान में ही होता है, श्रागे के गुणस्थानों में नहीं । तथा स्थावर - नामकर्म, एकेन्द्रियजातिनामकर्म, द्रोन्द्रियजातिनामकर्म, श्रीन्द्रियजातिनामकर्म, और चतुरिन्द्रयजाति - नामकर्म के उदयवाले जीवों में, तीसरे गुणस्थान से लेकर आगे का कोई भी गुणस्थान नहीं होता। क्योंकि स्थावर - नामकर्म का और एकेन्द्रियजाति-नामकर्म का उदय एकेन्द्रिय जीवों को होता है । तथा द्वीन्द्रियजाति- नामकर्म का उदय द्वीन्द्रियों को; त्रीन्द्रियजाति - नामकर्म का उदय श्रीन्द्रियों को और चतुरिन्द्रियजाति- नामकर्म का उदय
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