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उक्त पाठ कर्म-प्रकृतियों को घटाने से,शेष(७६)कर्म-प्रकतियाँ रहती हैं। उनमें श्राहारकशरीरनामकर्म तथा श्राहारकअगोपागनामकर्म इन दो प्रकृतियों के मिलाने से कुल हुई (८१)कर्म-प्रकृतियाँ । छठे गुणस्थान में इन्हीं (८१)कर्मप्रकृतियों का उदय हो सकता है।
- सातवे गुणस्थान में ७६ कर्म-प्रकृतियों का उदय होता है क्योंकि पूर्वोक्त (८१)-कर्म-प्रकृतियों में से स्त्यानदित्रिक और बाहरकद्विक इन (५) कर्म-प्रकृतियों का उदय छठे गुणस्थान के अन्तिम समय तक ही हो सकता है। श्रागे के गुणस्थानों में नहीं ॥१७॥
भावार्थ-सूक्ष्मनामर्कम-का उदय, सूक्ष्म-जीवों को ही अपर्याप्त-नाम कर्म का उदय, अपर्याप्तजीवों को ही और साधारण-नाम-कर्म का उदय अनन्त-कायिक-जीवों को ही होता है। परन्तु सूक्ष्म, अपप्ति और अनन्त-कायिक जीवों को न तो सास्वादन-सम्य कत्व प्राप्त होता है और न कोई सास्वादन प्राप्त-जीव, सूक्ष्म, अपर्याप्त या अनन्तकायिक रूपसे पैदा होता है। तथा श्रातप: नाम-कर्म का उदय बादर-पृथिवि कायिक जीवको ही होता है सो भी शरीर-पर्याप्ति के पूर्ण हो जाने के बाद ही; पहले नहीं। परन्तु सासादन-सम्यक्त्व को पाकर जो जीव वादर-पृथ्वी-काय में जन्म ग्रहण करते हैं वे शरीर-पर्याप्ति को पूरा करने के पहले ही-अर्थात् श्रातपनामकर्म के उदय का अवसर आने के पहले ही-पूर्वप्राप्तसास्वादनसम्यक्त्व का वमन कर देते हैं अर्थात् बादर-पृथ्वी कायिकजीवों को, जब सास्वादन-सम्यक्त्व का सम्भव होता है