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कार्यतःप्रोषितप्रिया।" साहित्यदर्पणकार एव नाट्यशास्त्रकार ने भी यही स्वरूप निरूपण किया है
नानाकार्याणि सम्धाय यस्या वै प्रोषितः प्रियः। सा रूढालककेशान्ता भवेत् प्रोषितभर्तृका।।
८. अभिसारिका - काव्य कोविदों की दृष्टि में अभिसारिका वह नायिका हुआ करती है जो कि काम के वश में पड़ी या तो अपने प्रणयी को अपने पास बुलाया करती है या स्वयं अपने प्रणयी के पास पहुँचा करती है
अभिसारयते कान्तं या मन्मथवशंवदा। स्वयं वाभिसरत्येषा धीरैरूक्ताभिसारिका।।'
जैनमेघदूतम् की नायिका राजीमती को हम स्वकीया वर्ग के अन्तर्गत रख सकते हैं क्योकि वह पतिव्रता नारी है। परन्तु नायिका राजीमती विवाह के लिए सजकर तैयार है वह अत्याधिक हर्ष के साथ अपने स्वामी के आगमन की प्रतीक्षा करती हैं। अतः यहाँ पर राजीमती की वासकसज्जावस्था पायी जाती है। श्री नेमि बारातियो के भोजनार्थ लाये गये पशुओं के करूण चीत्कार को सुनकर विरक्त हो जाते है और विवाह स्थल से तत्काल ही वापस होकर पर्वत श्रेष्ठ पवित्र रैवतक पर आत्म-शान्ति एवं अध्यात्मिक सुख प्राप्ति हेतु चले जाते है। श्री नेमि में तो जैनधर्म के बाईसवें तीर्थंकर होने के कारण देवत्व गुण विद्यमान है और अपने मार्ग से विचलित नहीं होते हैं। परन्तु राजीमती तो सांसारिक नारियों की तरह है। उसमें भी आदर्श नारी के सम्पूर्ण गुण विद्यमान है, अतः वे पति द्वारा पाणि ग्रहण अस्वीकार करके चले जाने पर अत्यधिक व्याकुल हो जाती है। यहाँ पर वे प्रोषितपतिका नायिका है।
दशरूपकम् पृ. १५६ २/४३ नाट्यशाख २२-२९९ साहित्यदर्पण ३/७६