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उपर्युक्त वर्णनो द्वारा यह ज्ञात होता है कि श्रीनेमि के गुणों का वर्णन करने मे ब्रह्मा भी व्यस्त रहते है । सामान्य व्यक्ति तो उनके गुणों का वर्णन कर ही नही सकता। श्रीनेमि को संसार से किञ्चित् भी लगाव नहीं है। वे अपने माता पिता द्वारा विवाह हेतु बार बार आग्रह किये जाने पर उनकी बात को अस्वीकार नही करते है। बल्कि बहुत सहजता से यह कहते हुए उन्हे प्रतीक्षा करने को कहते हैं कि- 'लोकप्रीतिकारिणी शाम - मार्दव, सन्तोष आदि गुणो की खान के समान किसी कन्या कोप्राप्त करूँगा तो उसी से विवाह करूँगा' कहने का अभिप्राय है कि लोक प्रीतिकारी गुणो से युक्त एक मात्र दीक्षा ही है। मै समय आने पर उसी को ग्रहण करूँगा ।
श्रीनेमि अत्यन्त विनोदी स्वभाव के हैं। एक बार श्री नेमि श्री कृष्ण के शस्त्रागार में प्रविष्ट हुए। वहाँ पर उन्होंने पाञ्चजन्य शंख को देखा। इन्होंने ध्वनि सुनने की इच्छा से जैसे ही उसे बजाना चाहा कि वैसे ही प्रतिहारी ने कहा कि यह शंख श्रीकृष्ण के अतिरिक्त किसी अन्य द्वारा नहीं बजाया जा सकता है। प्रतिहारी के वचनों को सुनकर श्री नेमि ने शंख को विनोदपूर्वक हाथ में धारण कर बजा दिया। शंख की आवाज इतनी अधिक गम्भीर थी जिसको सुनते ही शस्त्राध्यक्ष संज्ञा शून्य होकर पृथ्वी पर गिर पड़े, घोडे अश्वशाला छोड़कर और हाथी गजशाला छोड़कर अत्यन्त वेग पूर्वक भागने लगे। चारों तरफ हा-हाकार मच गया सैनिको के हाथों से शस्त्र गिरने लगे और महलो के शिखर भी ढहने लगे। शंख की गम्भीर ध्वनि से डरकर वीर लोग राजसभा मे ठिठके रह गये, श्रीकृष्ण भी, व्याकुल होकर सोचने लगे कि यह क्या हो गया।
श्रीनेमि अत्यन्त बलशाली थे। एकबार श्रीकृष्ण ने भुजबल की परीक्षा हेतु मल्लभूमि में उनका आह्वान किया। श्रीनेमि ने कुछ सोचकर श्रीकृष्ण से