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________________ उनके श्रीमुख के कमलपत्र उनके नेत्रों के, पुष्प सुगन्ध उनके मुखामोद के और उत्तमरत्न उनके शरीर के शल्य हैं। श्रीनेमि दस धनुष की ऊँचाई के बराबर थे और उनका शरीर नीलमणि की कान्ति से युक्त था। इस प्रकार उनकी सुन्दरता को शब्दों द्वारा व्यक्त करना असम्भव है। श्रीनेमि अनुपम व्यक्तित्व के धनी थे। जो भी सम्भाव्य सर्वोत्कृष्ट गुण है जैसे- साौभाग्य, अतुलित बल, जनाहलादक रूप लावण्य, दूसरों को अप्राप्त असीमित ज्ञान मैत्री, धैर्य करूणा क्षमा और कान्ति से युक्त बुद्धिमत्ता पूर्ण वचन आदि ये सब गुण श्रीनेमि प्रभु में ही प्राप्त हो सकते हैं। एक श्लोक में श्री नेमिनाथ के गणों की महनीयता के बारे में कवि ने उत्प्रेक्षा की है कि शेषनाग ने नेमिनाथ प्रभु के गुणगान के लिए ही हजारों मुख धारण किये हैं एवं इन्द्र ने इन्हें देखने के लिए ही हजारों आँखें लगा रखी है। ब्रह्मा प्रतिदिन प्रभु श्रीनेमि के गुण गणना में व्यस्त रहते है। दिन में आकाश रूपी पट्टिका को मार्जित कर रात्रि में प्रकाशित चन्द्रमा की कलङ्क रूपी स्याही और चन्द्रमा रूपी दावात तथा उसकी किरण रूपी लेखनी से तारों रूपी अंको के लिखने के व्याज से प्रभु के गुणों को गिनते है। लेकिन आज भी उन गुणों की इयत्ता नहीं प्राप्त कर सके। व्योमत्याजादहनि कमनः पट्टिकां सम्प्रमृज्य स्फूर्जल्लमालकशशिखटोपात्रमादाय रात्रौ। रुग्लेखन्या गणयति गुणान् यस्य नक्षत्रलक्षादङ्कास्तन्वन्न खलु भवेतऽद्यापि तेषामियत्ताम्।' जैनमेघदतम् १/२६
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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