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अर्थात् जिसमे घमण्ड और डाह (मात्सर्य) अधिक होता है, जो माया और कपट मे कुशल होता है, अहङ्कारी, चञ्चल, क्रोधी तथा आत्मश्लाघा करने वाला है, वह धीरोदात्त नायक है। धीरोद्धत का यही स्वरूप साहित्यदर्पण मे भी निर्दिष्ट है -
दर्पमात्सर्यभूयिष्ठो मायाच्छद्मपरायणः। धीरोद्धतस्त्वहंकारी चलश्चण्डो विकत्थनः।।
अर्थात् जो कि मायायटु हो, उग्र स्वभाव वाला हो, स्थिर प्रकृति का न हो, अहंकार और दर्प से भरा हो, और जिसे नाटकोविद आत्मश्लाघा में निरत कहा करते हैं।
उपर्युक्त चतुर्विध नायकों मे प्रत्येक के दक्षिण, धृष्ट, अनुकूल और शठ रूप होने से सब मिलाकर नायक के १६ भेद होते है।
श्री नेमि जैनमूघदूतम् के नायक है। श्रीनेमि को हम धीरोदात्त नायक कह सकते हैं क्यों कि ये उत्कृष्ट अन्तः करण वाले अत्यन्त गम्भीर तथा दृढ - निश्चयी है।
श्रीनेमि विद्वानों द्वारा जैनधर्म के बाइसवें तीर्थकर के रूप में माने जाते हैं। महाभारत काल में इनका प्रादुर्भाव हुआ था। हरि नामक प्रसिद्ध वंश मे उत्पन्न समुद्र विजय नामक राजा के पुत्र थे, इनकी माता शिवादेवी थीं। श्रीनेमि श्री कृष्ण के चचेरे भाई थे। इस प्रकार श्री नेमि यदुकुल में उत्पन्न हुए
श्रीनेमि एक अद्वितीय बालक थे। इनका सूतिकाकर्म आदि दिक् कन्याओं ने किया था। ये शैशवकाल में ही सब प्रकार से पुष्टि प्राप्त कर चुके थे, क्यों कि विना स्नान के ही स्फटिक सदृश धवल, विना आभूषणों के ही अतिकान्ति शाली, विना स्तनपान के ही, मात्र इन्द्रियपान से ही, पुष्ट अंग