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मन मन्दिर मे श्री नेमि को पति के रूप में प्रतिष्ठित कर लिया है। अपने सखियों द्वारा नाना प्रकार से समझाने पर भी वे अन्य राजकुमार से विवाह करने के लिए तैयार नही होती है। राजीमती मेघ को दूत बनाकर श्री नेमि के पास भेजती है। उसका सन्देश अत्यन्त कारूणिक विरह वेदना से युक्त है जिनको सुनकर कठोर से कठारे मानव का हृदय भी द्रवित हो जाता है परन्तु श्री नेमि तो इस मोह माया को क्षणिक मानते हैं, वे चिरानन्द को पाना चाहते है इसलिए उनके हृदय पर उसके तीक्ष्ण सनदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अन्त मे राजीमती भी अपने स्वामी की शरण मे जाकर व्रत ग्रहण कर लेती है और उन्हीं की तरह राग द्वेष से रहित होकर उनके प्रभाव से गिने हुए कुछ ही दिनों में परमानन्द के सर्वस्व मोक्ष का वरण कर अनुपम शाश्वत सुख के प्राप्त करती है।