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(३३) महा पुरूष चरित जो कि संस्कृत भाषा मे निबद्ध है इसमें ५ सर्ग है तथा ऋषभ, शान्ति, नेमि, पार्श्व और महावीर इन ५ तीर्थकरो का वर्णन है।
(३४) भाव कर्म प्रक्रिया (३५) लक्षणशास्त्र (३६) कल्पसूत्र वृत्ति भी इन्हीं की रचनाएँ हैं।
इस प्रकार विविध साक्ष्य ग्रन्थों के आधार पर श्री आचार्य मेरूतुङ्ग द्वारा रचित ३६ ग्रन्थो का नामोल्लेख मिलता है जिनमें कुछ ग्रन्थो का तो विस्तृत उल्लेख प्राप्त होता है और कुछ का केवल नाम मात्र मिलता है उसके विषय मे विस्तृत जानकारी नही मिल पाती है। कुछ ऐसी भी ग्रन्थ है जिनकी स्थिति के प्रति शंका व्यक्त की गई है। आचार्य के जितने ग्रन्थ उपलब्ध हैं उनके आधार पर कह सकते है कि इन्होने साहित्य जगत को अनूठा अवदान दिया
है
आचार्य मेरूतुङ्ग ने अपना जीवन पट्टण, खंभात, भड़ौच, सौपारक, कुकंण, कच्छ, पारकर, सांचौर, मरू गुज्जर झालावाड, महाराष्ट्र, पांचाल लाटदेश, जालोर, घोघा, अनां, दीव मंगलपुर नवा प्रभृति स्थानों में विचरण और धर्मोपदेश करते हुए व्यतीत किया।
संवत १४७१ में मार्गशीर्ष पूर्णिमा सोमवार के पिछले प्रहर में उत्तराध्ययन श्रवण करते हुए अर्हतसिद्धों के ध्यान में मग्न श्री मेरूतुङ्गसूरि जी ने इहलीला का संवरण किया।
' वहीं पृ. २२३
नागेन्द्र गच्छ का इबिहास पृ. सं. ६० (पट्टावली समुच्चय प्रथम भाग पृ. १३१४)