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आचार्य मेरूतुङ्ग का व्यक्तित्व एवं कृतित्व
संस्कृत दूतकाव्यो मे सर्वप्राचीन कवि शिरोमणि कालिदास का मेघदूतम् है। इनके पश्चात् अन्य कवियो ने भी दूतकाव्यो की रचना की। जैन कवियों ने तो संस्कृत साहित्य मे अनेक दूतकाव्यो की रचना कर संस्कृत के विद्वानो को आश्चर्य चकित कर दिया है। इस प्रकार दूतकाव्यों की परम्परा को आगे बढ़ाने मे जैन कवियों का अद्वितीय स्थान है। इन्हीं जैनकवियों मे आचार्य मेरूतुङ्ग का नाम प्रमुख है जिन्होने जैनमेघदूतम् की रचना की है। आचार्य मेरूतुङ्ग तत्कालीन साहित्य क्षितिज के प्रकाशमान नक्षत्र हैं। इनके जीवन के विषय मे विभिन्न प्रकार की भ्रान्तियाँ हैं। ___आचार्य मेरूतुङ्ग का जीवन परिचय:- जैन साहित्य में मेरूतुङ्ग नामक तीन आचार्य हुए है परन्तु काव्य जगत् में दो ही आचार्य मिलते है। इनमे प्रथम आचार्य मेरूतुङ्ग सूरि है जो प्रभुसूरि के शिष्य थे। इन्होंने बढवाण मे रहते हुए वि. सं. १३६१ (ई. सन् १३०५) में संस्कृत भाषा मे 'प्रबन्धचिन्तामणि' की रचना की है।
द्वितीय आचार्य मेरूतुङ्गसूरि अचलगच्छ के एक विद्वान् आचार्य थे। इनके द्वारा रचित अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियाँ प्राप्त होती है जिनमें एक कृति जैनमेघदूतम् है।
अचलगच्छीय आचार्य मेरूतुङ्ग-सूरि जैन साहित्व्य में एक प्रसिद्ध विद्वान् हुए है। इनके जीवन के विषय में विभिन्न प्रकार की प्रान्तियाँ पाई जाती है। जैसे इनका जन्म स्थान पट्टावली के अनुसार नानागाम और जाति
जैनमेघदूतम् - रविशंकर मिश्र पृ. सं. ७१ श्रमण पृ. सं. ५९