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कथावस्तु संक्षेप मे इस प्रकार है। सीता को रावण अपहृत कर लेता है, सीता के वियोग मे उनके पति अत्यधिक व्याकुल हो जाते हैं और अपने विरह ताप को सहन नही कर पाते है तभी उन्हे एक हंस दिखता है उस हंस द्वारा वह अपने विरह सन्देश सीता के पास भेजते हैं। काव्य अतिलघु होते हुए रोचक है। इस काव्य का रचना सौष्ठव भी सुगठित है।
हृदयदूतम् - ' यह दूतकाव्य भी अन्य दूतकाव्य के ही समान है जिसमे हृदय को दूत के रूप में स्वीकार किया गया है। काव्य की कथा स्वतन्त्र रूप से कल्पित है। इस दूतकाव्य के रचनाकार श्री भतृरि है। हंसदूतम् मे एक नायिका अपने प्रियतम नायक के पास अपना सन्देश हृदय को दूतबनाकर सम्प्रेषित किया है। काव्य अतिलघु होते हुए भी सुन्दर है। इंदिरेश नरेश के मनोदूतम् के साथ ही यह दूतकाव्य भी प्रकाशित हुआ था। . (ख) संस्कृत-साहित्य में उपलब्ध जैन दूतकाव्य -
जैनकवि कालिदास द्वारा रचित मेघदूतम् के प्रति विशेषतः आकृष्ट थे। अधिकांश जैनकवियो ने मेघदूतम् के अन्तिम चरणों को ही समस्या रूप से ग्रहण कर उसकी पूर्ति अपनी ओर से की है आचार्य जिनसेन कवि ने तो मेघदूतम् के समस्त पद्यो के समग्र चरणो की पूर्ति की है। इस प्रकार संस्कृतसाहित्य में दूतकाव्य की परम्परा को आगे बढाने में जैन कवियों का विशेष योगदान है। यहाँ पर जैनदूतकाव्यों का संक्षिप्त मे परिचय प्रस्तुत किया जा
रहा है।
औफेक्ट के कैटलोगस कैटालोगरम् के प्रथम-भाग पृष्ठ सं० ७५३ पर उल्लिखित, अप्रकाशित। चुन्नीलाल बुकसेलर, बड़ा मन्दिर, भूलेश्वर, बम्बई से प्रकाशित।