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मिलते है। काव्य मन्दाक्रान्ता छन्दो का प्रयोग है। कवि अपनी काव्य निपुणता प्रदर्शनार्थ प्रारम्भ मे मंगलाचरण स्वरूप एकाक्षर एवं द्वयक्षरात्मक तीस श्लोक दिये है। काव्य का सम्पूर्ण अंश नही उपलब्ध है फिर भी काव्य अद्वितीय है।
मेघप्रति सन्देश':- दक्षिण भारत के आधुनिक कवि श्री मन्दिकल राम शास्त्री द्वारा यह दूतकाव्य रचा गया है। सन् १९२३ ई० के लगभग इन्होंने इस दूतकाव्य की रचना की है। यक्ष के सन्देश को लेकर मेघ अलकापुरी पहुंचता है। वहाँ वह यक्ष की प्रिया को यक्ष का सन्देश सुनाता है प्रिय के सन्देश को सुनकर उसे विरह व्यथा के कारण अति वेदना होती है। अतः हाथ के सहारे से किसी प्रकार उठकर धीरे-धीरे वह मेघ से वर्तालाप करती है तथा यक्ष के पास अपना प्रति सन्देश ले जाने की प्रार्थना करती है। इस काव्य में मेघ द्वारा यक्ष के सन्देश को सुनकर अपनी प्रिया मेघ के ही द्वारा यक्ष के पास अपना प्रति सन्देश भेजती है। अतः इस काव्य का नाम मेघप्रति सन्देश उचित ही है। काव्य के प्रथम सर्ग में ६८ एवं द्वितीय सर्ग ९६ श्लोक है। मन्दाक्रान्ता छन्द भी प्रयुक्त हुआ है। इस प्रकार यह काव्य अतिसुन्दर है।
यज्ञ मिलनकाव्यम्:- संवत् १९वीं शती में रचा गया यह दूतकाव्य महामहोपध्याय श्री परमेश्वर द्वारा प्रणीत है। इन्होने धर्मकाण्ड, कर्म काण्ड, नाटक काव्य कोष आदि विविध पक्षों पर अपने विचार व्यक्त किया है।
मुद्गरदूतम्:- पं. रामगोपाल शास्त्रों द्वारा रचित यह दूतकाव्य स्वतन्त्र कथा पर आधारित एक अति मनोरंजक दूतकाव्य है। कवि ने काव्य में मुद्गर अर्थात गदा को सन्देश दिया है। समाज में फैली तमाम तरह की भ्रष्टताओं
गवर्नमेंट प्रेस, मैसुर से सन् १९२३ में प्रकाशित संस्कृत के सन्देशकाव्य रामकुमार अचार्य, परिशिष्ट २ अप्रकाशित