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छोड़ जाती है, जब वह नायक जागता है तब अपने को अकेला पाकर उसे बड़ा दुःख होता है। इस अवसर पर एक भृंग उड़ता हुआ उसके पास आता है बस, वह उसको ही दूत बनाकर अपनी प्रेयसी के पास भेजता है। काव्य एक सरस रचना है। विप्रलम्भ शृङ्गार ही प्रधान रस है। विषय भेद होते हुए भी काव्य मे शैली की एक रूपता है, अतः सुन्दर भावों के साथ ललित भाषा लिखा गया यह काव्य पाठको को मुग्ध करने वाला है।
कोकिल सन्देश' (वि० पंचदश- षोडश शतक) इस दूतकाव्य के रचनाकार उद्दण्ड कवि है। कोकिल सन्देश काव्य की कथावस्तु इस प्रकार हैकोई प्रेमी अपने प्रासाद पर प्रेयसी के साथ प्रेमालाप करते-करते सो जाता है। प्रातः काल होने पर वह देखता है कि कम्पा नदी के तट पर स्थित कांची नगरी मे भवानी के मन्दिर के पास वह पड़ा हुआ है। इसी अवसर पर उसे आकाश वाणी सुनाई पड़ती है कि वरूणपुर से विमान द्वारा आती हुई अप्सराएँ उसे यहाॅ ले आई है। यदि वह पांच महिने तक कांची मे निवास करेगा तो फिर कभी उसका अपनी प्रेयसी से वियोग नहीं होगा। इस आकाशवाणी को सुनने के बाद वह वहाँ निवास करने लगता है। दो तीन महीने बाद वसन्त ऋतु के आने पर अत्यधिक विह्वल हो जाता है और कोकिल से प्रेयसी के पास अपना सन्देश ले जाने का प्रार्थना करते है । भावों के अनुकूल, सरस और प्रवाहपूर्ण भाषा है। मेघदूत की शैली, छन्द, विषय व्यवस्था तथा भाव योजना से यह काव्य पूर्णतया प्रभावित है । कहीं-कहीं भावसाम्य के साथ-साथ शब्द साम्य भी है। काव्य की शैली और प्रवाह निर्दुष्ट है।
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संस्कृत के सन्देश काव्य पृ. सं. ३०३
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