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वशीभूत हो जाने के कारण वह शिवभक्ति से वियुक्त हो जाता है। किसी तरह कुछ दिन बीतने के बाद वह अपने मनरूपी हंस को दूतबनाकर शिवलोक में स्थित अपनी प्रेयसी शिवभक्ति के पास प्रेम-सन्देश देकर भेजता है-' इस प्रकार भाषा भाव छन्द तथा प्रक्रिया इन सभी दृष्टियो से यह सन्देश काव्य सुन्दर रचना है। वृत्तियों के सन्दर्भ मे कवि ने कहा है -
गौडवैदर्भपांचाल भालाकार सरस्वती
यस्य नित्यं प्रशंसन्ति सन्तससौर भवेदिनः। शुक संदेश:- इस दूत काव्य के रचयिता श्री लक्ष्मी दास है। शुक संदेश का रचना काल ६६६ कोलम्ब वर्ष सन् १४६१ ई. है। इस दूतकाव्य की कथा इस प्रकार है - गुणकापुरी मे शरद ऋतु की रात्रि मे अपने प्रासाद के ऊपर दो प्रेमी सुखमय विहार मे मग्न थे। इतने में नायक को अकस्मात् ऐसा स्वप्न आता है कि वह अपनी प्रेयसी से बिछुड़ गया है और घूमतेघूमते रामेश्वर के समीप रामसेतु पर पहुँच गया है। तदन्तर स्वप्न मे ही वह अपनी प्रेयसी के पास शुक के द्वारा सन्देश भेजता है। प्रस्तुत दूतकाव्य में मन्दाक्रान्ता छन्द है। अलंकार योजना तथा कोमल कल्पना से यह काव्य भरा पड़ा हुआ है।
ग सन्देश:-' यह भृग सन्देश दक्षिण भारत के किसी वासुदेव नामक कवि की रचना है। यह सन्देश काव्य सं. १५७५ ई. में लिखा गया है। इस सन्देश काव्य की कथावस्तु इस प्रकार है कि किसी समय रात्रि में नायक अपनी प्रेमिका के साथ अपने प्रासाद पर निद्राविहार कर रहा था। इसी अवसर पर कोई यक्षी उसके सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उसे मलयपर्वत पर उड़ा कर ले जाने लगी। मार्ग में अपने यक्ष को आता देखकर वह उसे स्यानन्दूर मे
वही पृ. सं. २८० संस्कृत के सन्देश काव्य पृ. सं. ३०३