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दानं दत्त्वासुरतरुरिवात्युच्चधामारुरुक्षुः पुण्यं पृथ्वीधरवरमथो रैवतं स्वीचकार।।'
इस प्रकार आचार्य मेरुतुड्ग ने सम्यग्चरित्र के प्रत्येक बिन्दु का काव्य मे चित्रण किया है।
निष्कर्षतः हम स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि आचार्य मेरूतुङ्ग की जीवन दृष्टि जैन धर्म पर आधारित है। इन्होने जैनमेघदूतम् के माध्यम से अपने इस दृष्टिकोण को दर्शाया भी है।
आचार्य ने जैन दर्शन के एक-एक अंग के आधार पर श्री नेमि के चरित्र का वर्णन किया है! जैनमतानुसार जीवन का मूल्य मोक्ष है। यह मोक्ष त्रिरत्नो से ही प्राप्त हो सकता है। ऐसा आचार्य मेरूतुङ्ग ने इस काव्य में इंगित किया है। यही जैन धर्म का भी मत है।
जैनमेघदूतम् १/१