________________
219
(३) किसी वस्तु के यर्थाथ स्वरूप को छिपाकर कुछ दूसरा वर्णन कर देना।
(४) अहित, अमंगल, अप्रिय वचन बोलना।
काव्य के नायक श्री नेमि ने सत्य मार्ग का अनुसरण किया है। इन्होंने जीवन के वास्तविक सत्य को पहचाना है। वे झूठे संसार के बंधनों में बँधना नही चाहते है। माता-पिता द्वारा पाणिग्रहण हेतु बारम्बार आग्रह करने पर उन्हे मधुर वाणी मे यह कह कर प्रतीक्षा कराते है
लप्स्ये लोकम्पृणगुणखनी चेतकन्नीतद्विक्ष्ये ऽतीक्ष्णोक्तो त्याग मर्यत कियत्कालमेषोऽप्यलक्ष्यः।
अर्थात यदि मैं लोकप्रतिकारिणी शाम मार्दव, सन्तोष आदि गुणो के समान किसी कन्या को प्राप्त करूँगा तो उसी से विवाह करूगाँ। इनके कथन का अभिप्राय है कि प्रीतिकारी गुणो से युक्त एक मात्र दीक्षा ही है समय आने पर उसी को ग्रहण करूँगा।
यहाँ आचार्य ने जीवन व्यापी सत्य को स्वीकार किया है।
इसीप्रकार श्री नेमि कभी भी किसी को अहित, अमंगल अप्रिय वचन नही बोलते है। काव्य में श्री नेमि श्रीकृष्ण की पत्नियो का मन रखने के लिए राजीमती से विवाह करने को भी तैयार हो जाते है जबकि वे विवाह करना नहीं चाहते है। अतः वे उन्हें किसी प्रकार का अप्रिय बात बोलकर दुःखित नहीं करना चाहते है। इस प्रकार श्री नेमि ने सत्य का पालन किया है।
३- अस्तेय - सर्वथा और वृत्ति का त्याग करना अस्तेय कहलाता है। जैनदर्शन मे घन सम्पत्ति को मनुष्य का वाह्य जीवन कहा गया है। अतः धन सम्पत्ति का अपहरण हिंसा माना गया है। अस्तेय व्रत के निम्नलिखित अंग है
(१) स्वयं चोरी करना चोरी करने की प्रेरणा देना।