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लक्ष्य तक पहुँचने मे सक्षम होता है। कवि ने काव्य मे अहिंसा धर्म का पालन भी किया है। श्री नेमि अहिंसा के परम पुजारी है। जैनमेघदूतम् के तृतीय सर्ग मे विवाह स्थल पर पशुओ के करूण कन्दन को सुनकर और यह जानवर कि इन पशुओ के मास से विवाह की शोभा बढ़ेगी। श्री नेमि अत्यन्त दुःखित होते है साथ ही यह संकल्प करते है कि 'मैं इन पशुओं को छुड़ाकर दीक्षा ग्रहण कर लूँगा।'
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अन्ततः श्री नेमि मौत के डर के कारण कॉपते हुए तथा असह्यावस्था मे दीन होकर ऊपर देखने वाले उन पशु-पक्षियों को उसी प्रकार छुड़ा देते है जैसे राजा प्रसन्न होने पर सापराधी लोगो को छोड़ देता है ।
'दीनोत्पश्यन् पुरवननभश्चारिणश्चारबन्धं
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बद्धान बन्धैर्गलचलनयोर्वेपिनो मृत्युभीत्या | '
यहाँ पर श्री नेमि ने अहिंसा धर्म का पूर्णतः पालन किया है।
२- सत्य मिथ्या वचन का परित्याग तथा यथा दृष्टि, यथाश्रुत वस्तु
के स्वरूप का कथन ही सत्य कहलाता है। सत्य केवल यर्थाथ स्वरूप का कथन ही नहीं वरन हित भी है। यदि भावना में अहित हो अथवा जिससे किसी को कष्ट पहुँचता हो तो वह सत्य वचन असत्य हैं। जैन दर्शन में सत्य का स्वतन्त्र स्थान नहीं वरन् सत्य अहिंसा की रक्षा के लिए बतलाया गया है। असत्य वचन के ४ प्रकार है:
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(१) किसी सत् वस्तु के स्वरूप, स्थान, काल आदि के सम्बंध में झूठ बोलकर असत् उसे बतलाना ।
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(२) किसी असत् वस्तु के स्वरूप, स्थान, काल आदि के विषय में झूठ बोलकर उसे सत् बतलाना।
जैनमेघदूतम् ३/४४