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छुद्रो शाखानवकिशलयो बाहुपाणिद्वयेन।'
अर्थात् कमल उनके चरणो के, कदली स्तम्भ उनकी उरूओ के, गङ्गा का तट उनकी कटि के, शोण उनकी नाभी के, प्रतोलीद्वार (तोरण) उनके वक्ष के, कल्पवृक्ष की शाखा उनकी भुजा के और उसके किसलय उनके करों के पूर्णचन्द्र उनके श्रीमुख के, कमल पत्र उनके नेत्रों केपुष्प सुगन्ध उनके मुखामोद के और उत्तम रत्न उनके शरीर के तुल्य है।
पूर्णन्दुः ...... उपमाधिक्यदोषस्तथापि।
नेमि के सुन्दर वदन से पूर्णचन्द्र सदृश्य प्राप्त करता है। नेमि के नेत्रों से कमल-दल सदृश प्राप्त करता है। नेमि के शरीर से रिष्टरत्न सदृशता प्राप्त करते है। अगर विद्वज्जन कहीं भी वर्णनीय पदार्थ समूहो की भगवान के अङ्गों द्वारा उपमा देते हैं तो भी उपमाधिक्य दोष होता है?
कवि ने अनेक स्थलो पर सुन्दर कल्पना का परिचय दिया है। ऐसी ही एक अदभुत कल्पना को देखिए जिसमें प्रकृति मनुष्य की तरह रोते पश्चात्ताप करते हुए दिखाई देती है। जलक्रीडा कर निकले हुए उन भगवान् श्री नेमि के कर्णाभूषण बने हुए कमल जलबूंदों को टपकाते हुए एवं गुञ्जार करते हुए भ्रमरो से युक्त होकर ऐसे लग रहे थे, मानों वे रोते हुए पश्चात्ताप कर रहे हों, कि 'हाय मै प्रभु के नेत्रो की स्पर्धा करने के कारण पाप का पात्र बन गया हूँ
एक अन्य स्थल पर कवि ने श्री नेमि के श्यामवर्ण शरीर के प्रत्येक अङ्ग से हो रहे जलस्राव को अनेक प्रकार से कल्पना किया है
दानच्येतिर्द्विप इव झरनिर्झरो वाञ्जनाद्रिः पिण्डीभूतं वियदिव मनाक् शारदं वर्षदब्दम् । निन्ये सर्वापघननिपतन्मेघपुष्पोऽञ्जनाभः
जैनमेघदूतम् १/२३