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श्लोक मे कवि ने वात्सल्य प्रेम का कितना नवीन एवं हृदयहारी चित्र
उपस्थित किया है
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त्यक्त्वा नाग दृढितपरमप्रेम हस्तेन हस्तं वद्ध्वा बन्धोर्गज इव गजस्यैष बम्भ्रम्यभाणः वीक्षाञ्चक्रे सरससरसीः सस्मितं पाणिपद्मैराम्भीनर्मानिव कलरुतान् पत्रिणः खेलयन्ती । '
अर्थात् हे मेघ। उन श्रीकृष्ण ने हाथी के हाथ को छोड़कर अपने प्रेम को और दृढ करते हुए, श्रीनेमि के हाथ से हाथ मिलाकर घूमते हुए हँसते हुए तलाबो को देखा जिसमें हवा के झोंकों से हिलते हुए कमलों के साथ कलरव करते हुए जलपक्षी खेल रहे थे। वे ऐसे लग रहे थे जैसे तलाब रूपी मॉ कमल रूपी हाथो से रोते हुए बच्चों की तरह शब्द करते हुए पक्षियों को खिला रही हो ।
प्राकृतिक सौन्दर्य तथा मानवीय सौन्दर्य दोनो का ही आचार्य ने अपने काव्य मे बढ़ चढकर वर्णन किया है। इनके अद्भुत काव्य की प्रशंसा कहां तक की जाय।
कवि की बिम्बसंयोजना भी उच्चकोटि की है। बिम्ब संयोजना का एक रमणीय उदाहरण दर्शनीय है, जिसमें श्री नेमि के अंगों की सुन्दरता का वर्णन
पद्मं पद्भ्यां सरसकदलीकाण्ड उर्वोर्युगेन । स्वर्वाहिन्याः पुलिनममलं नेमिनः श्रोणिनैव । शोणो नाभ्याञ्चति अदृशतां गोपुरं वक्षसा च
मूघदूतम् २ / ३९