________________
लताएं धनुष और बाण चढाए हुए कामदेव की शोभा कोप्राप्त हो रही है। ' शिखर पर घिरे हुए भ्रमर समूहरूपी शिरस्त्राण रूपी बाहो मे फल रूपी ढालो को धारण किये बल्कल रूपी कवच को पहने हुए पत्तो के अंकुरण रूपी मुस्कान एवं शुको के शब्द रूपी किलकिलाहट से युक्त वृक्ष, धनुष बाण से युक्त उत्कृष्ट योद्धा की तरह शोभित हो रहे है । '
199
इस प्रकार आचार्य ने वसन्तु ऋतु का जैसा स्निग्ध एवं हृदयहारी वर्णन किया है वैसा अन्यत्र पाना दुर्लभ है। बाह्य प्रकृति का वर्णन करते समय ऐसा प्रतीत होता है उनकी अन्तरात्मा प्रकृति के साथ तदाकार हो गई है। एक स्थानपर वन मे आये हुए श्रीकृष्ण और श्री नेमि की सेवा मे वन लक्ष्मी ने नृत्य गीत का आयोजन किया हैं। उस समय की शोभा का कवि ने कितना सजीव चित्रण किया है
वाता वाद्यध्वनिमजनयत् वल्गु भृङ्गा अगायं
स्तालान् दध्रे परभृतगण: कीचका वंशकृत्यम् । वल्ल्यो लोलैः किशलयकर्लास्यलीलां च तेनस्तद्भक्त्ये व्यरचयदिव प्रेक्षणं वन्यलक्ष्मीः । '
अर्थात् उस समय वन की शोभा ऐसी लग रही थी मानो वन्यलक्ष्मी ने उन दोनो की सेवा में नृत्यगीत का आयोजन किया हो। जिसमें वायु वाद्य यन्त्रो को बजा रहा है, भौरे सुमधुर गीत गा रहे हो, कोयलों का समूह ताल दे रहा हो, छिद्रयुक्त बाँस वंश वर्णन कर रहे हैं तथा लताएँ अपने हिलते हुए पत्तो से नृत्य कर रही है।
१
जैनमेघदूतम् २/९ जैनमेघदूतम् २/१० जैनमेघदूतम् २/१४