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भवन्ति यस्मिन्सा ज्ञेया श्रीधरा नामतो यथा'।।
सुवृत्ततिलक मे कवि क्षेमेन्द्र ने मन्दाक्रान्ता छन्द का लक्षण देते हुए लिखा है कि सप्तदश अक्षरो वाले इस वृत्त मे चार, छ: एवं सात अक्षरो पर विरति होती है:
चतुःषट्सप्तविरतिवृत्तं सप्तदशाक्षरम् मन्दाक्रान्ता मभनतैस्तगगैश्चाभिधीयते।'
श्री भट्टकेदार विरचितम् ‘वृत्तरत्नाकार' मे मन्दाक्रान्ता का स्वरूप इस प्रकार प्रतिपादित किया गया है:
मन्दाक्रान्ता जलधिषडगैम्भौं नतौ ताद् गुरू चेत् ।
अर्थात् जिस पद्य के प्रत्येक चरण मे क्रम से मगण, भगज, नगण दो तगण और दो गुरू हो उसे 'मन्दाक्रान्ता' छन्द कहते हैं।'
उपर्युक्त सभी ग्रन्थो के आधार पर हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि मन्दाक्रान्ता १७ अक्षरो से युक्त होता है अर्थात चारो चरणों मे १७-१७ अक्षर होते है। उनमे प्रथम, चतुर्थ, दशम, ग्यारहवाँ, तेरहवॉ, चौदहवाँ, सोलहवाँ एवं सत्रहवाँ अक्षर गुरु तथा शेष अक्षर लघु होते है। गणों के आधार पर इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि इसमें मगण, भगण नगण, दो तगण और दो गुरू होते हैं।
मगण भगण नगण तगण तगण गुरू 555 SII III 551 551 55
नाट्य शास्त्रम् १५/७६,७७ सुवृत्ततिलकम् १/३५ वृत्तरत्नाकर ३/९५ पृ. सं. १४४