________________
191
(घ) छन्द
सम्पूर्ण सृष्टि लय मे बँधी हुई है। पृथ्वी सूर्य आदि सभी ग्रहो मे गति, लय है। यह लय सूक्ष्म से स्थूल तक है। मनुष्य के भावो मे भी लय होती है। इस लय की अभिव्यक्ति छन्द से होती है। ___हमारे साहित्यचार्यों ने विभिन्न प्रकार के शृङ्गार, वीर, शान्त, हास्य, करूण आदि रसो मे विभिन्न प्रकार के छन्दो का प्रयोग किया है। जो कुशल कवि है वह रस और परिस्थितियों के अनुकुल तथा भावो के वातावरण की सृष्टि के लिए विभिन्न प्रकार के छन्दो का प्रयोग करता है।
___ आचार्य मेरूतुङ्ग ने भी अपनी कृति में रस और भावो के अनुसार छन्द का प्रयोग किया है जिसका नाम है मन्दाक्रान्ता। मन्दाक्रान्ता छन्द किसे कहते है। तथा इसके विषय में विभिन्न आचार्यों ने क्या कहा है? इस पर बहुत संक्षेप मे जानना आवश्यक है।
छन्दशास्त्र आद्य ग्रन्थ 'पिङ्गलछन्दः सूत्रम्' मे मन्दाक्रान्ता छन्द का लक्षण इस प्रकार दिया गया है:
मन्दाक्रान्ता म्भौ नतौ त्गौ ग् समुद्रर्तुस्वराः।'
आचार्य भरत ने मन्दाक्रान्ता को “श्रीधरा' नाम से सम्बोधित करते हुए इसका लक्षण इस प्रकार दिया है:
चत्वार्यादौ च दशमं गुरूण्यथ त्रयोदशम् चतुर्दशं तथा पञ्च एकादशमथापि च। यदा सप्तदशे पादे शेषाणि च लघून्यपि
पिङ्गलछन्दा:सूत्रम् ७/११